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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्व-समाहि-वत्तियागारेणं वोसिरइ (वोसिरामि) ।
अर्थ-दिनके शेष भागसे संपूर्ण रात्रि पर्यंत पच्चक्खाण करता है (करता हुं)। उसमें चारो प्रकार के आहार का अर्तात अशन (भूखको शांत करनेके लिए भात आदि द्रव्य), पान (सादा पानी), खादिम (भूना हुआ धान, फल आदि) एवं स्वादिम (दवाई - पानी के साथ) का अनाभोग (इस्तेमाल किये बिना विस्मृति हो जाने से किसी चीज को मुख में डाला जाये वह), सहसात्कार (अपने आप ही अचानक मुख में कोई चीज प्रवेश करे वह), महत्तराकार (बडी कर्मनिर्जराकी वजह आना वह) एवं सर्व-समाधि-आगार (किसी भी तरीके से समाधि नहीं ही रहती तब ) ईन छह आगारों का (छूट) को रखकर त्याग करते है (करता हुँ)। ( नोंध - ठाम चउविहार और सूर्यास्तके समय चारो आहारका त्याग करनेवाले श्रावकोको यह पच्चक्खाण करना है ।)
तिविहार पच्चक्खाण सूत्र अर्थ सहित दिवस चरिमं पच्चक्खाइ (पच्चक्खामि )
तिविहंपि आहारं असणं, खाइमं साइमं, अन्नत्थणा - भोगेणं,
सहसा - गारेणं, महत्तरा - गारेणं,
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