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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
कर्यं . चउविहार, आयंबिल, नीवि, अकासण, बियासण पच्चक्खाण कर्यं तिविहार, पच्चक्खाण फासिअं, पालिअं, सोहिअं, तीरिअं कीहिअं, आराहिअं,
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जं च न आराहिअं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं
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अर्थ - सूर्योदय के पश्चात् दो घडी / एक प्रहर / डेढ़ प्रहर/ दो प्रहर/तीन प्रहर मुट्ठिसहित पच्चक्खाण में चारों तरह के आहार का त्याग किया है ।(जो पच्चक्खाण किया गया हो उसे ही बोलना)
आयंबिल/ नीवि / एकासण / बियासण जल के अलावा के तीन आहार के त्याग के साथ किया गया है ।
मेरे यह पच्चक्खाणको मैंने स्पर्शा (विधि के द्वारा उचित समय पर जो पच्चक्खाण लिया गया है वह ) है, शोभायमान किया (गुरुको (बड़ोको) देकर बचा हुआ भोजन करना वह) है, तीर्युं (कुछ अधिक समय के लिए धीरज धारण कर के पच्चक्खाण का पालन करना वह) है, कीर्त्यं (भोजनके वक्त पच्चक्खाण समाप्त होने पर स्मरण करना वह) है एवं आराधायुं (उपर्युक्त अनुसार आचरण किया हुआ पच्चक्खाण वह) है, उसमें जिसकी आराधना न की गई हो एसा मेरा पाप मिथ्या हो एवं उसका नाश हो ।
(नोंध - ‘नमुक्कारसहिअं' से 'अवड्ड' तकका पाठ लगातार न बोलते हुए जो पच्चख्खाण किया गया हो उसे ही बोलना चाहिए । और आयंबलि से बियासण तक के भी एकासण का उच्चारण करना चाहिए, पर आयंबिल या नीवि की गई हो तो आयंबिल या नीवि बोलने के साथ एकासण अवश्य बोलना चाहिए । इस्तेमाल