________________
श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
३२५
उपर्युक्त अनुसार आचरण किया हुआ पच्चक्खाण वह) है, और अगर एसी आराधना न की हो तो, वैसा मेरा पापकर्म मिथ्या बन जाये ।
( पच्चक्खाणकी छह शुद्धि भी बताई गई है । १ - श्रद्धावंत के पाससे पच्चक्खाण करवाना वह श्रद्धाशुद्धि २ पहचान प्राप्त करने के बाद उनको उपयोग करना वह ज्ञान - शुद्धि ३ - गुरुको वंदन करने जैसा विनय करके पच्चक्खाण लेना वह विनयशुद्धि ४- गुरु पच्चक्खाण दे तब साथ साथ मंद स्वर में मनमें पच्चक्खाण बोलना वह अनुभाषण शुद्धि ५- संकटमें भी लिये हुए पच्चक्खाणका उचित रूप से अनुसरण करे वह अनुपालन शुद्धि एवं ६ - आलोक-परलोक के सुखकी ईच्छा बिना (केवल कर्मक्षय के लिए) पालन करे उसे भाव शुद्धि कहा जाता है ।),
पोरिसि एवं साडपोरिसि पच्चक्खाण का सूत्र अर्थ सहित उग्गए सूरे पोरिसिं,
साड-पोरिसिं मुट्ठिसहिअं पच्चक्खाई ( पच्चक्खामि ) चउव्विहं पि आहारं, असणं, पाणं, खाईमं, साईमं, अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पच्छन्नकालेणं,
दिसामोहेणं, साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहि-वत्तियागारेणं वोसिरई (वोसिरामि) ।
1
अर्थ - सूर्योदयसे एक प्रहर (दिनका चारआनी भाग) तक पोरिसि, डेढ़ प्रहर (दिन का छ आनी भाग) तक साडपोरिसि - मुट्ठिसहित नामक पच्चक्खाण करते है । जिसमें चारों प्रकारके आहारका अर्थात् अशन (भूखको शांत करनेके लिए भात आदि द्रव्य), पान (सादा पानी), खादिम ( भूना हुआ धान, फल आदि )