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________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित ३१९ एक साथ अनेक उपवासका पच्चक्खाण एक ही दिन में लेने के पश्चात या फिर मन में केवल तय कर लेने के पश्चात दूसरे - तीसरे आदि दिनों में फिर से पच्चक्खाण न लेने से उपवास का लाभ होता नहीं है |पानी मुँह में रखने के बाद सुबह का किसी भी प्रकार का पच्चक्खाण लिया नहीं जा सकता। ___अभी, नवकारशी आदि पच्चक्खाणमें कुछ अज्ञानता एवं देखादेखीकी वजह से पच्चक्खाण पारने के तुरंत बाद कुल्ला करनेकी या दातुन करने की या कुछ जल ग्रहण करने की प्रवृत्ति विधि अनुसार आरंभ हुई है, जो उचित नहीं है । सर्व प्रथम तो पच्चक्खाण को पारनेकी विधिका आग्रह रखना आवश्यक है। फिरभी अगर शक्यता न हो तो तीन बार श्री नवकारमंत्र मुट्ठि बंध करके गिनने की प्रथा प्रचलित है। सूर्योदय के पश्चात् दो घडी (४८ मिनिट) हो तब तक नवकार से पच्चक्खाण आये, उस तरह सूर्यास्त पूर्व (पहले) दो घडी (४८ मिनिट) हो तब तक चारों प्रकार से आहार का त्याग समान चउविहारका पच्चक्खाण करने की प्रथा जैनशासनमें प्रचलित थी एवं हाल में भी चतुर्विध श्री संघमें कुछ समुदाय इसके अनुसार सूर्यास्त से दो घडी पहेलेही आहार-जल का त्याग करता है, वह अनुकरणीय है। शायद यह (दो घडी पहेले पच्चक्खाण करना) शक्य न हो सके, तो बारों महीने चउविहार का पच्चक्खाण सूर्यास्त पहले कर लेना चाहिए । रात्रिभोजन नर्कका प्रथम द्वार है। रात को आहार-जल कुछभी नहीं लिया जा सकता और दिया भी नहीं जा सकता । फिर भी धर्म में नया प्रवेश करनेवाले महानुभवों को कुछ फायदा हो, इस इरादे से तिविहार का पच्चक्खाण दिया जाता
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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