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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
तेषां शान्ति र्भवतु भवता मर्हदादि प्रभावा दारोग्य श्री धृति मति करी क्लेश विध्वंसहेतुः ।। (१) हे भव्यजनो ! आप सब मेरा यह प्रासंगिक वचन सुनिये । जो श्रावक जिनेश्वरकी रथयात्रामें भक्ति भजनेवाले हैं, उन श्रीमानों को अर्हद आदिके प्रभावसे आरोग्य, लक्ष्मी, चित्तकी स्वस्थता और बुद्धिको देनेवाली तथा सब क्लेश-पीड़ाका नाश करनेमें कारणभूत, ऐसी शान्ति प्राप्त हो |(१)
(२ पीठिका)
शांतिकी उद्घोषणा सुनिए भो भो भव्यलोका! इह हि भरतैरावत विदेह सम्भवानां समस्त तीर्थ कृतां जन्म न्यासन प्रकम्पानन्तर
मवधिना विज्ञाय, सौधर्माधिपतिः सुघोषा घण्टा चालनानन्तरं, सकल सुरा सुरेन्द्रैः सह समागत्य,
सविनय मर्हद् भट्टारक गृहीत्वा गत्वा कनकाद्रि शृंगे, विहित जन्माभिषेक:
शान्ति मुद्घोषयति, यथा ततोहं कृतानुकार मिति कृत्वा, "महाजनो येन गतः स पन्था "!
इति भव्यजनैः सह समेत्य स्नात्रपीठे स्नात्रं विधाय, शान्ति मुद्घोषयामि तत्पूजा यात्रा स्नात्रादि महोत्सवा नन्तर मिति कृत्वा कर्णं दत्त्वा निशम्यतां निशम्यतां स्वाहा || (२)