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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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विषादका नाश करे, और मेरे कर्मोको दूर करनेकी कृपा करो | यह युगल इस स्तोत्रका अच्छी तरह पाठ करनेवालोंको हर्ष प्रदान करे, इस स्तोत्रके रचयिता श्रीनन्दिषेणको अति आनन्द प्राप्त कराए और इसके सुननेवालोंको भी सुख तथा समृद्धि दे; तथा अन्तिम अभिलाषा यह है कि मेरे (नन्दिषेणके) संयममें वृद्धि करे । उपसर्गका निवारण करनेवाला यह (अजित-शान्ति-स्तव) पाक्षिक, चातुर्मासिक और सांवत्सरिक प्रत्तिक्रमणमें अवश्य पढ़ना और सबको सुनना चाहिये । (३६-३७-३८-३९)
हररोज दोनो समय यह स्तुति पढनेके लाभ
जो पढइ जो अ निसुणइ,
उभओ कालंपि अजिअ संतिथयं । न हु हुंति तस्स रोगा, पुव्वुप्पन्ना वि नासंति | (३९) “यह अजित-शान्ति-स्तव” जो मनुष्य प्रातःकाल और सायंकाल पढ़ता है अथवा दूसरोंके मुखसे नित्य सुनता है, उसको रोग होते ही नहीं और पूर्वोत्पन्न हों, वे भी नष्ट हो जाते हैं | (३९)
जइ इच्छह परम-पयं,
अहवा कित्तिं सुवित्थडं भुवणे | ता तेलुक्कुद्धरणे, जिण वयणे आयरं कुणह । (४०) यदि परम पदको चाहते हो अथवा इस जगत्में अत्यन्त विशाल कीर्तिको प्राप्त करना चाहते हो तो तीनों लोकका उद्धार करनेवाले जिनवचन के प्रति आदर करो | (४०)