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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
धम्मसारहीणं, धम्म वर चाउरंत चक्कवट्टीणं. (६) अप्पडिहय वर नाण दंसण धराणं, वियट्ट-छउमाणं. (७)
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जिणाणं जावयाणं, तिन्नाणं तारयाणं, बुद्धाणं बोहयाणं, मुत्ताणं मोअगाणं. सव्वन्नूणं, सव्व दरिसीणं सिव, मयल, मरुअ, मणंत, मक्खय,
मव्वाबाह, मपुणरावित्ति, सिद्धिगइ नामधेयं, ठाणं, संपत्ताणं, नमो जिणाणं जिअ भयाणं. (९) जे अ अइया सिद्धा, जे अ भविस्संति णागए काले, संपइ अ वट्टमाणा, सव्वे तिविहेण वंदामि (१०)
नमस्कार हो (८ प्रातिहार्यदि सत्कार के योग्य) अरिहंतो को, (उत्कृष्ट ऐश्वर्यादिमान) भगवंतों को, (इस सूत्र में प्रथम पद प्रत्येक विशेषण को लग सकता है, जैसे कि नमोत्थु णं अरिहंताणं, नमोत्थु णं भगवंताणं, नमोत्थु णं आइगराणं), (१) धर्म (अपने अपने धर्मशासन) के आदिकर को, चतुर्विध संघ (या प्रथम गणधर) के स्थापक को, (अन्तिम भव में गुरु बिना ) स्वयंबुद्ध को (स्वयं बोध प्राप्त कर चारित्र - ग्रहण करनेवालों को), (२)
जीवों में (परोपकार आदि गुणो से) उत्तम को, जीवों में सिंह जैसे को, (जो परिसह में धैर्य, कर्म के प्रति क्रूरता आदि शोर्यादि गुणोसे युक्त), जीवों में श्रेष्ठ कमल समान को, (कर्मपंक