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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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श्री महावीरस्वामीकी स्तुति संसार दावानल दाह नीरं, संमोह धूली हरणे समीरं. माया रसा दारण सार सीरं, नमामि वीरं गिरि सार धीर. (१)
सर्व तीर्थंकर भगवंतोकी स्तुति भावा वनाम सुर दानव मानवेन, चूला विलोल कमला वलि मालितानि.
संपूरिता भिनत लोक समीहितानि, कामं नमामि जिनराज पदानि तानि. (२)
आगम-सिद्धांतकी स्तुति बोधागाधं सुपद पदवी नीर पूराभिरामं, जीवा हिंसा विरल लहरी संग-मागाह-देहं
चूला वेलं गुरुगम मणी संकुलं दूर पारं,
सारं वीरागम जल निधिं सादरं साधु सेवे.(३) संसार रूपी दावानल के ताप को शांत करने में जल समान, प्रगाढ मोह रूपी धूल को दूर करने में वायु समान, माया रूपी पृथ्वी को चीरने में तीक्ष्ण हल समान और मेरु पर्वत समान स्थिर श्री महावीर स्वामी को मैं वंदन करता हूँ | (१) भाव पूर्वक नमन करने वाले सुरेंद्र, दानवेंद्र और नरेंद्रो के मुकुट में स्थित चंचल कमल श्रेणियों से पूजित और नमन करने वाले लोगों के मनोवांछित पूर्ण करने वाले जिनेश्वरों के उन चरणोंमें मैं श्रद्धा पूर्वक नमन करता हूँ | (२)