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________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित २३५ (दायां कांधा पडिलेहतां) १६- क्रोध, १७-मान परिहीं. (बायां कांधा पडिलेहतां) १८) माया, १९) लोभ परिहरे. (दायां चूंटना पडिलेहतां) २०- पृथ्वीकाय, २१- अप्काय, २२- तेउकायकी जयणां करुं (बायां चूंटना पडिलेहतां) २३- वायुकाय, २४- वनस्पति काय, २५- त्रसकायकी रक्षा करें. वांदणा - २५ आवश्यकके साथ ३२ दोषरहित, विनयभाव युक्त द्वादशावर्त वंदनका वर्णन ( सा पहला वंदन (१-इच्छा निवेदन स्थान) इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए (१) (२-अनुपज्ञापन स्थान) अणुजाणह मे मिउग्गह, (२)निसीहि (गुरुके अवग्रहमें प्रवेश कर रहे हे ऐसा भाव दर्शानेके लिए शरीरको थोडा आगे करे) अ हो का यं काय संफास खमणिज्जो भे ! किलामो ? __ (३-शरीरयात्रा पृच्छा स्थान) अप्प किलंताणं ! बह सुभेण भे !
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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