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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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(दायां कांधा पडिलेहतां) १६- क्रोध, १७-मान परिहीं.
(बायां कांधा पडिलेहतां) १८) माया, १९) लोभ परिहरे.
(दायां चूंटना पडिलेहतां) २०- पृथ्वीकाय, २१- अप्काय, २२- तेउकायकी जयणां करुं
(बायां चूंटना पडिलेहतां) २३- वायुकाय, २४- वनस्पति काय,
२५- त्रसकायकी रक्षा करें.
वांदणा - २५ आवश्यकके साथ ३२ दोषरहित, विनयभाव युक्त द्वादशावर्त वंदनका वर्णन
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सा
पहला वंदन (१-इच्छा निवेदन स्थान)
इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए (१)
(२-अनुपज्ञापन स्थान) अणुजाणह मे मिउग्गह, (२)निसीहि (गुरुके अवग्रहमें प्रवेश कर रहे हे ऐसा भाव दर्शानेके लिए शरीरको थोडा आगे करे)
अ हो का यं
काय संफास खमणिज्जो भे ! किलामो ?
__ (३-शरीरयात्रा पृच्छा स्थान) अप्प किलंताणं ! बह सुभेण भे !