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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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पंचपरमेष्ठिको नमस्कार र नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं,
- नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहूणं, एसो पंच नमुक्कारो, सव्व पावप्पणासणो,
मंगलाणं च सव्वेसिं, पढम हवइ मंगलं || (१) मैं नमस्कार करता हूं अरिहंतो को, मैं नमस्कार करता हूं सिद्धों को, मैं नमस्कार करता हूं आचार्यों को, मैं नमस्कार करता हूं उपाध्यायों को, मैं नमस्कार करता हूं लोक में (रहे) सर्व साधुओं को, यह पांचो को किया नमस्कार, समस्त (रागादि) पापों (या पापकर्मो) का अत्यन्त नाशक है, और सर्व मंगलों में श्रेष्ठ मंगल है |(१) (नीचे बैठके छठे आवश्यककी मुहपत्तिकी पडिलेहणा करके दो वांदणा देना।)
मुहपत्ति पडिलेहणके २५ बोल १- सूत्र, अर्थ, तत्त्व करी सद्दहुं, २ - सम्यक्त्व मोहनीय, ३- मिश्र मोहनीय,
४- मिथ्यात्व मोहनीय परिहरुं, ५- काम राग, ६- स्नेह राग,
७- दृष्टि राग परिहरे, ८- सुदेव, ९- सुगुरु, १०- सुधर्म आदएं, र ११- कुदेव, १२- कुगुरु, १३- कुधर्म परिहरे,
१४- ज्ञान, १५- दर्शन, १६- चारित्र आदएं, १७- ज्ञान विराधना, १८- दर्शन विराधना,