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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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(ज्ञानाचारकी शुद्धिके लिए काउस्सग्ग) ( एक लोगस्स 'चंदेसु निम्मलयरा' तक या चार नवकारका काउस्सग्ग करके
'नमो अरिहंताणं' कही, पारी ‘सिद्धाणं' सूत्र बोलना।)
२४ तीर्थंकरोके नाम स्मरणकी स्तुति लोगस्स उज्जोअगरे;
धम्म तित्थयरे जिणे। अरिहंते कित्तइस्सं चउवीसं पि केवली (१) उसभ, मजिअं च वंदे, संभव, मभिणंदणं च सुमई च;
पउमप्पह, सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे (२) सुविहिं च पुष्पदंतं, सीयल, सिज्जंस, वासुपूज्जं च। विमल, मणंतं च जिणं, धम्म, संतिं च वंदामि (३) कुंथु, अरं च मल्लिं वंदे मुणिसुव्वयं, नमिजिणं च।
वंदामि रिट्ठनेमि, पासं तह वद्धमाणं च (४) एवं मए अभिथुआ विहुय रयमला पहीण जर मरणा।
चउवीसं पि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु (५) कित्तिय वंदिय महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा |
आरुग्ग बोहिलाभं समाहिवर मुत्तमं किंतु (६) चंदेसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहियं पयासयरा।
सागरवर गम्भीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु (७) पंचास्तिकाय लोक (विश्व) के प्रकाशक, धर्मतीर्थ (शासन) के स्थापक, रागद्वेष जैसे आंतर शत्रुओं के विजेता, अष्ट प्रतिहार्यादि शोभा के योग्य चौबीसों सर्वज्ञों का कीर्तन करूंगा (१)