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________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित २२३ 'पुक्खरवर' सूत्रमें पहेली गाथामें सर्व तीर्थंकरोको नमस्कार किया है जिन्होंने धर्म का प्रचार पवित्र आगमो द्वारा किया है |दूसरी गाथामें श्रुतका माहात्म्य दिखाते नमस्कार किया है | तीसरी गाथामें श्रुतज्ञानके गुणों का विशेष वर्णन किया है |चौथी गाथामें श्रुतको संयमधर्मका पोषक तथा चारित्रधर्मकी वृद्धि करते दिखाया है । यह स्तुतिके बाद श्रुतदेवताका कायोत्सर्ग करना है । (पूज्य श्रुतधर्मेको (वंदनादि) के लिए कायोत्सर्ग करता हुं।) श्रुत प्रभुकी वंदना करने के लिए श्रद्धादि द्वारा आलंबन लेकर कायोत्सर्ग करनेका विधान - सुअस्स भगवओ करेमि काउस्सग्गं. वंदण वत्तिआओ, पूअण वत्तिआओ, सक्कार वत्तिआओ सम्माण वत्तिआओ, बोहिलाभ वत्तिआओ, निरुवसग्ग वत्तिआओ (२) सद्धाओ, मेहाओ, धिई, धारणाओ, अणुप्पेहाओ, वड्डमाणीओ, ठामि काउस्सग्गं. मैं कायोत्सर्ग करता हूं श्रुत भगवंतका, (मन-वचन-काय से संपन्न) वंदन हेतु (पुष्पादि से सम्पन्न) पूजन हेतु, (वस्त्रादि से सम्पन्न) सत्कार हेतु, (स्तोत्रादि से सम्पन्न) सन्मान हेतु, (तात्पर्य, वंदनादि की अनुमोदना के लाभार्थ) (एवं) सम्यक्त्व हेतु, मोक्ष हेतु, (यह भी कायोत्सर्ग 'किन साधनों' से? तो कि) वड्ढमाणीए-बढती हुई, श्रद्धा-तत्वप्रतीति से (शर्म-बलात्कार से नहीं), मेधा- शास्त्रप्रज्ञा से (जडता से नहीं), धृति - चित्तसमाधि से (रागादि व्याकुलता से नहीं) धारणा - उपयोगदृढता से (शून्यचित्त से नहीं), अनुप्रेक्षा - तत्त्वार्थचिंतन से (बिना चिंतन नहीं), मैं कायोत्सर्ग करता हूं |
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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