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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
विमलनाथ को, श्री अनन्तनाथ को, श्री धर्मनाथ को व श्री शान्तिनाथ को वदंन करता हूं । (३)
श्री कुंथुनाथ को, श्री अरनाथ को व श्री मल्लिनाथ को श्री मुनिसुव्रत स्वामी तथा श्री नमिनाथ को वंदन करता हूं । श्री मनाथ को, श्री पार्श्वनाथ को, श्री वर्धमान स्वामी (श्री महावीर स्वामी) को वंदन करता हूं । (४)
इस प्रकार मुझसे अभिस्तुत (जिनकी स्तवना की गई है वे ) कर्मरज- रागादि मल को दूर किया है (निर्मल) जिन्होंने वे, जरावस्था व मृत्यु से मुक्त (यानी - अक्षय) चौबीस भी (अर्थात् अन्य अनंत जिनवर के उपरान्त २४ जिनवर धर्मशासनस्थापकों मुझ पर अनुग्रह (प्रसन्न हो) करें । (५)
कीर्तन, वंदन, पूजन किये गए ऐसे, व लोक (सुर असुर आदि सिद्धजन के समूह ) में जो श्रेष्ठ सिद्ध हैं वे मुझे भव - आरोग्य (मोक्ष) के लिए बोधिलाभ एवं उत्तम भावसमाधि दें । (4) चंद्रो से अधिक निर्मल, सूर्यो से अधिक प्रकाशकर, समुद्रों से उत्तम गांभीर्यवाले (उत्कृष्ट सागर स्वयंभूरमण जैसे गंभीर) और सिद्ध (जीवन्मुक्त सिद्ध अरिहंत) मुझे मोक्ष दें । (७)
अज्ञानरुपी अंधकारके समूहका नाश करनार श्रुतज्ञानरुप आगमकी स्तुति पुक्खरवर दीवड्ढे, धायइ संडे य जंबुदीवे य
भर हेर व विदेहे, धम्माइगरे नम॑सामि (१) तम तिमिर पडल विद्धं सणस्स, सुरगण नरिंद- महियस्स
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