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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
प्रभुकी वंदना करने के लिए श्रद्धादि द्वारा आलंबन लेकर कायोत्सर्ग करनेका विधान
सव्वलोए अरिहंत - चेईयाणं, करेमि काउस्सग्गं (१)
वंदणवत्तियाए, पूअणवत्तियाए, सम्माणवत्तियाए,
सक्कारवत्तियाए, बोहिलाभवत्तियाए, निरुवसग्गवत्तियाए (२) सद्धा, मेहाए, धिईए, धिईए, धारणाए, अणुप्पेहाए, वड्ढमाणीए ठामि काउस्सग्गं
(3)
,
मैं कायोत्सर्ग करता हूं, सर्व लोक के अरिहंत प्रभु की प्रतिमाओं के (मन-वचन-काय से संपन्न) वंदन हेतु, (पुष्पादि से सम्पन्न ) पूजन हेतु, (वस्त्रादि से सम्पन्न ) सत्कार हेतु (स्तोत्रादि से सम्पन्न ) सन्मान हेतु, (तात्पर्य, वंदनादि की अनुमोदना के लाभार्थ) (एवं) सम्यक्त्व हेतु, मोक्ष हेतु, (यह भी कायोत्सर्ग 'किन साधनों' से ? तो कि) वड्ढमाणीए - बढती हुई, श्रद्धा तत्वप्रतीति से (शर्म-बलात्कार से नहीं), मेधा - शास्त्रप्रज्ञा से (जडता से नहीं), धृति - चित्तसमाधि से (रागादि व्याकुलता से नहीं) धारणा - उपयोगदृढता से (शून्य - चित्त से नहीं), अनुप्रेक्षा - तत्त्वार्थचिंतन से (बिना चिंतन नहीं), मैं कायोत्सर्ग करता हूं ।
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काउस्सग्गके १६ आगार (छूट) का वर्णन अन्नत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिणं, छीएणं, जंभाइएणं, उड्डणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए,
पित्तमुच्छाए (१)
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