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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
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पानीमें,विनयमें, वैयावृत्यमें, बोलनेमें, बातचीत करनेमें, उच्च आसन रखनेमें, समान आसन रखनेमें, बीचमें बोलनेसे, गुरुकी बातसे उपर होके बोलनेसे, गुरुवचनकी टीका करने जैसा जो कोई अप्रिय या विशेष अप्रीति उपजे ऐसा कार्य किया हो, मुझसे कोई सुक्ष्म या स्थुल, कम या ज्यादा, जो कोई विनयरहित वर्तन हुआ हो, जो आप जानते हो परंतु मै नहीं जानता, ऐसा जो कोई अपराध हुआ हो तो ते संबंधी मेरे सब अपराध मिथ्या हो ।
देव-गुरुको पंचांग वंदन
इच्छामि खमासमणो ! ___वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए, HG मत्थएण वंदामि (१) मैं इच्छता हूं हे क्षमाश्रमण ! वंदन करने के लिए, सब शक्ति लगाकर व दोष त्याग कर मस्तक नमाकर मैं वंदन करता हूं | (१)
की इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! IN संवच्छरी खामणां खामुं !'इच्छं',
हे भगवंत ! संवत्सरी खामणा खामुं ? इच्छा मान्य है।
(प्रत्येक खामणाके पहले, एक खमासमण देके, दायां हाथ चरवला पर
रखकर, सिर झुकाकर नवकार बोलो।)
इच्छामि खमासमणो !
वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए, HD मत्थएण वंदामि (१)