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________________ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित १९७ वांदणा - २५ आवश्यकके साथ ३२ दोषरहित, विनयभाव युक्त द्वादशावर्त वंदनका वर्णन पहला वंदन (१-इच्छा निवेदन स्थान) इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए (१) (२-अनुपज्ञापन स्थान) अणुजाणह मे मिउग्गह, (२) निसीहि (गुरुके अवग्रहमें प्रवेश कर रहे हे ऐसा भाव दर्शानेके लिए शरीरको थोडा आगे करे) अ हो का यं काय संफासं _ खमणिज्जो भे ! किलामो ? ___ (३-शरीरयात्रा पृच्छा स्थान) अप्प किलंताणं ! बहु सुभेण भे ! संवच्छरो वइक्कंतो (३) (४- संयमयात्रा पृच्छा स्थान) । ज त्ता भे (४) (५-त्रिकरण सामर्थ्यकी पृच्छा स्थान) ज व णि जं च भे (५) (६-अपराध क्षमापना स्थान) खामेमि खमासमणो ! संवच्छरीअं वइक्कम (६) आवस्सिआए (अवग्रहमें से बहार नीकलकर, फिरसे आनेका भाव दर्शानेके लिए शरीरको थोडा पीछे करे) पडिक्कमामि, खमासमणाणं,
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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