________________
श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
१६९
५-भरत, ५- औरावत व ५- महाविदेह में स्थित, मन-वचन और काया से पाप प्रवृत्ति नहीं करते , नहीं कराते और करते हुए का अनुमोदन भी नहीं करते ऐसे जितने भी साधु भगवंत हों उन सबको मैं नमस्कार करता हूँ | (४५)
(शुभ भावकी प्रार्थना) चिर संचिय पाव पणासणीइ, __ भव सय सहस्स महणीए चउवीस जिण विणिग्गय कहाइ,
वोलंतु मे दिअहा । (४६) दीर्घकाल से संचित पापों का नाश करनेवाली, लाखो भव का क्षय करने वाली जैसी चौबीस जिनेश्वरों के मुख से निकली हुई धर्मकथाओं (देशना) के स्वाध्याय से, मेरे दिवस व्यतीत हो |(४६) मम मंगल मरिहंता, सिद्धा साहू सुअंच धम्मो अ
सम्म दिहि देवा, दिंतु समाहिं च बोहिं च | (४७) अरिहंत भगवंत, सिद्ध भगवंत, साधु भगवंत, द्वादशांगी रूप श्रूतज्ञान व चारित्रधर्म मुझे मंगल रूप हो, वे सब तथा सम्यग्दृष्टि देव मुझे समाधि और बोधि (परभवमें जिनधर्म की प्राप्ति) प्रदान करें | (४७)
(किस कारणसे प्रतिक्रमण करना) पडिसिद्धाणं करणे, किच्चाण मकरणे पडिक्कमणं असद्दहणे अ तहा, विवरीअ परूवणाए अ | (४८)