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________________ १०६ श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित अतिचार-प्रमाद से या क्रोधादि अप्रशस्त भावों से १) चोर द्वारा चोरी हुइ वस्तु स्वीकारना २) चोरी करने का उत्तेजन मिले ऐसा वचनप्रयोग करना ३) माल में मिलावट करना ४) राज्य के नियमों से विरुद्ध वर्तन करना और ५) झूठे तौल तथा माप का उपयोग करना...अन्य के पदार्थों का हरण करने से प्रतिबंध रूप अदत्तादान विरमण व्रत के अतिचारों द्वारा दिनभर में लगे हुए कर्मो की मैं शुद्धि करता हूँ | (१३-१४) (मैथुनके अतिचार) चउत्थे अणुव्वयंमि, निच्चं परदार गमण विरईओ; आयरिअम प्पसत्थे, इत्थ पमायप्पसगेणं| (१५) अपरिग्गहिआ इत्तर, अणंग विवाह तिव्व अणुरागे चउत्थ वयस्सइआरे, पडिक्कमे देसि सव्वं । (१६) चौथे मैथुन अणु-व्रत में नित्य परस्त्री गमन से निवृत्ति में अप्रशस्त भाव और प्रमाद के कारण यहां लगे अतिचारों का में प्रतिक्रमण करता हूँ |(१५) अविवाहिता के साथ गमन करने से, अल्प समय के लिये रखी स्त्री के साथ गमन करने से, काम वासना जाग्रत करनेवाली क्रियाओं से,दूसरों के विवाह कराने से और विषय भोग में तीव्र अनुराग रखने से दिन में लगेसर्व अतिचारों का में प्रतिक्रमण करता हूँ |१६) (परिग्रहके अतिचार) इत्तो अणुव्वए पंचमंम्मि, आयरिअम प्पसत्थम्मि; परिमाण परिच्छेए, इत्थ पमाय प्पसंगेणं| (१७) धण, धन्न, खित्त, वत्थु, रुप्प,
SR No.007740
Book TitleSamvatsari Pratikraman Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIla Mehta
PublisherIla Mehta
Publication Year2015
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size28 MB
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