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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
संक्षिप्त प्रतिक्रमण स्थापना सूत्र र सव्वस्स वि देवसिअ,
दुच्चिंतिअ, दुब्भासिअ, दुच्चिहिअ, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! इच्छं,
तस्स मिच्छामि दुक्कडं | (१) पूरे दिवस संबधीके सावध विचारो, सावध भाषा और सावध कायचेष्टा,ये संबंधी मेरे दुष्कृत्य मिथ्या हरे।
यहाँ 'सर्वे' मतलब सिर्फ काया नहीं, परंतु मन-वचन ओर कायारुपी त्रिकरण दोषोका मिच्छा मि दुक्कडं । यह सूत्र संक्षिप्तसे संक्षिप्त देवसिअ प्रतिक्रमण रुप है। सव्वसवि = सव्व (देवसिअ दुच्चिंतिअ, दुम्भासिअ, दुच्चिठिअ) सवि । सावद्य पापोका आलोचन सिर्फ उपर, उपरसे नहीं,परंतु सर्वे लेना । सव्व मतलब मन, वचन और कायाका सावध पापोका मिच्छा मि दुक्कडं।
( फिर दायां घुटना उपर करके आगेके सूत्र बोले )
पंचपरमेष्ठिको नमस्कार नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, - नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहूणं,
एसो पंच नमुक्कारो,
सव्व पावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं || १) मैं नमस्कार करता हूं अरिहंतो को, मैं नमस्कार करता हूं सिद्धों को, मैं नमस्कार करता हूं आचार्यों को, मैं नमस्कार करता हूं उपाध्यायों