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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
विहस्स सावग घम्मस्स, जं खंडिअं जं विराहिअं, तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
मैं कायोत्सर्ग में स्थिर होना चाहता हूँ । काया द्वारा, वाणी द्वारा, मन द्वारा, उत्सूत्र कहने से, उन्मार्ग में चलने से, अकल्पनीय वर्तन करने से, अकरणीय कार्य करने से, दुष्ट ध्यान करने से, दुष्ट चिंतन करने से, अनाचार करने से, अनिच्छित वर्तन से, श्रावकके योग्य व्यवहारसे विरुद्ध आचरण करने से, ज्ञान संबंधी, दर्शन संबंधी, देश- विरति चारित्र संबंधी, श्रुत ज्ञान संबंधी, सामायिक संबंधी, तीन गुप्तियों संबंधी, चार कषाय संबंधी और पांच अणु व्रत में, तीन गुण व्रत में, चार शिक्षाव्रत में - बारह प्रकार के श्रावक धर्म में खंडना हुई हो, जो विराधना हुई हो, मेरे द्वारा दिवस में जो अतिचार हुए हों, मेरे वे सर्व दुष्कृत्य मिथ्या हों ।
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'इच्छामि ठामि सूत्र प्रतिक्रमण प्रायश्चित स्वरुप है। कायोत्सर्ग प्रायश्चित स्वरुप, प्रतिक्रमण प्रायश्चित करने से पूर्व यह सूत्र आता है। यहां काउस्सग्गमें स्थिर होनेके लिए मिच्छा मि दुक्कडं देना है ।
आते-जाते जीवोके विराधनाकी विषेश माफी
तस्स उत्तरीकरणेणं, पायच्छित्तकरणेणं, विसोहीकरणेणं,
विसल्लीकरणेणं, पावाणं कम्माणं; निग्घायणडाए, ठामि काउस्सग्गं ।
(१)
(जिस अतिचार दोषोका प्रतिक्रमण किया) उन पापोको विशेष शुद्ध करनेके लिए, उनके प्रायश्चितसे आत्माकी विशुद्धिके लिए,