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Svayambhūstotra
10 श्री शीतलनाथ जिन Lord Śītalanātha
न शीतलाश्चन्दनचन्द्ररश्मयो न गाङ्गमम्भो न च हारयष्टयः । यथा मुनेस्तेऽनघवाक्यरश्मयः शमाम्बुगर्भाः शिशिरा विपश्चिताम् ॥
(10-1-46) सामान्यार्थ - हे भगवन् ! आप ज्ञानी (श्री शीतलनाथ भगवान्) की वीतरागमई जल से भरी हुई व पाप-रहित निर्दोष वचन रूपी किरणें भेद-ज्ञानी जीवों को जैसी शीतलता या सुख-शान्ति देने वाली होती हैं उस प्रकार संसार-ताप हरण करने वाली न चन्दन है, न चन्द्रमा की किरणें हैं, न गंगा नदी का जल है और न ही मोतियों की मालाएँ हैं।
O Lord Śītalanātha! The rays of your unblemished words, bathed in the cool water of passionless and ineffable peace, are more soothing to an aspirant after Truth than the paste of sandalwood, the rays of the moon, the water of the Ganges and the garland of pearls.
सुखाभिलाषानलदाहमूछितं मनो निजं ज्ञानमयामृताम्बुभिः । व्यदिध्यपस्त्वं विषदाहमोहितं यथा भिषग्मन्त्रगुणैः स्वविग्रहम् ॥
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