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Svayambhūstotra
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श्री सुविधिनाथ ( श्री पुष्पदन्त ) जिन
एकान्तदृष्टिप्रतिषेधि तत्त्वं प्रमाणसिद्धं तदतत्स्वभावम् । त्वया प्रणीतं सुविधे स्वधाम्ना नैतत्समालीढपदं त्वदन्यैः ॥
Lord Suvidhinātha (Lord Puspadanta)
(9-1-41)
सामान्यार्थ हे सुविधिनाथ (श्री पुष्पदन्त ) भगवन् ! आपने अपने केवलज्ञान-रूप तेज से यथार्थ जानकर जो जीवादि पदार्थों के स्वभाव का प्रतिपादन किया वह एकान्त दर्शन का निषेधक अर्थात् अनेकान्त दर्शन का पोषक है। प्रत्यक्ष-परोक्ष प्रमाणों से सिद्ध है। तत् (विधि) तथा अतत् (निषेध) स्वरूप अर्थात् किसी अपेक्षा से तत्स्वरूप है, किसी अपेक्षा से अतत्स्वरूप है। आपसे अन्य, जो सर्वज्ञ व वीतराग नहीं हैं, उन्होंने इस प्रकार तत्त्व का अनुभव प्राप्त नहीं किया है।
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O Lord Suvidhinatha! With the light of your omniscience you had promulgated the nature of reality in a manner which contradicts the absolutistic point of view, well-founded, and incorporates the principle of predication involving both the affirmation and the negation, depending on the point of view. Others have not been able to view the nature of reality in such light.