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Svayambhūstotra
सामान्यार्थ - भगवान् ऋषभदेव इक्ष्वाकु वंश के आदि राजा थे, मोक्ष के अभिलाषी थे, वे अपनी इन्द्रियों को वश करके आत्मा के स्वरूप में तिष्ठने वाले थे, स्वतन्त्र थे, परीषहों को सहने के लिए शक्तिमान थे, तथा व्रतों से डिगने वाले नहीं थे। उन्होंने पतिव्रता समुद्र पर्यन्त वस्त्र वाली इस पृथ्वी रूपी स्त्री को त्याग कर मुनि दीक्षा धारण की थी।
Lord Rşabha Deva, the first of the kings of the Ikşvāku dynasty, was the seeker of liberation, won over his senses to get established in the pure Self, independent, endured afflictions, and steadfast in his resolve. He relinquished the expanse of the faithful Lady Earth, clothed, as it were, up to the ocean, and embraced the noble asceticism, free from all vestiges of clothes (digambara).
स्वदोषमूलं स्वसमाधितेजसा निनाय यो निर्दयभस्मसाक्रियाम् । जगाद तत्त्वं जगतेऽर्थिनेऽञ्जसा बभूव च ब्रह्मपदाऽमृतेश्वरः ॥
(1-4-4) सामान्यार्थ - जिन्होंने अपने राग, द्वेष आदि दोषों के मूल कारण चार घातिया कर्मों को शुक्लध्यान रूपी अग्नि के प्रभाव से निर्दयतापूर्वक नष्ट कर दिया व तत्त्वज्ञान के अभिलाषी जगत् के प्राणियों के लिए यथार्थ रूप से जीवादि तत्त्वों के स्वरूप का वर्णन किया तथा अन्त में जो मोक्ष अवस्था के अविनाशी सुख के स्वामी हो गए।
Lord Rṣabha Deva destroyed ruthlessly, with the powerful fire of