________________
दादा गुरु आरती
ॐ जय गुरुदेवा, भारती मंगल मेवा, आननद सुख लेवा, जय जय गुरुदेव । रसा
एक व्रत, दोय व्रत, तीन चार व्रत, पंचम व्रत खोटे । भविक जीव निस्तारण, सुस्नर मन मोहे ।।१।। ॐ जय ।।
दुःख दोहा सब हरकर सद् गुरू, राजन प्रतिरोधे । सुत लक्ष्मी चर देकर, श्रावक कुल सोधे ॥२॥ॐ जय ||
बिद्या पुस्तक धरकर सद् गुरू, मुगल पूत तारे । यश कर जोगण चौसठ, पाँच पीर सारे 11३ 11ॐ जय ||
बीज पडती वारि सद् गुरू समुद्र जहाज नारी । वीर किये वश बाचन, प्रमरे अवतारी ॥४॥ जय ।।
जिनदत्त, जिनचन्द्र कुशलसूरी, शुरू सन्नना ॥ चौरासी गच्छ पूजे, मन वांछित ताजा ॥५॥ ॐ जय ||
मन शुध्द आरती कष्ट निवारण, सद् गुरू की कीजे । जो माँगे सो पावे, जन में यश लीजे ॥६॥ॐ नमः ॥
विक्रमपुर में भक्त तुम्हारी, मंत्र फला थानी ।
| नित उठध्यान लगायत समग्रांनि फल पावत, जतिन
ॐ मंगल दीपक क
गोफि
भ
मंगल दीपक खाणे,
मंगल दीप मंगल अट्टाले रेफचे मंगल सामा, अन्त
अरियन हर मंगल दोन रिंग
GREICH