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SHRI edar 3723
Hhhilkhi
मत्तद्विपेन्द्र मृगराज- दवानलाऽहिसंग्राम-वारिधि महोदर-बन्धनोत्थम् ।
तस्याशु नाशमुपयाति भयं नियेव यस्तावक स्तयमिमं मतिमानमधीते ।।४७।।
जो बुद्धिमान मनुष्य भक्तिभावपूर्वक आपके इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह मदोन्मत हाथी, कुछ सिंह, दावानल, विषार नाग, भयानक युद्ध, समुद्र, जलोदर (रोग) और कारागार इन आठ प्रकार के भयों से सदा मुक्त रहता है भय स्वयं ही उससे डरकर दूर चला जाता है।
કે નાથ! જે કોઈ બુદ્ધિશાળી મનુષ્ય, ભક્તિભાવપૂર્વક તમારા આ સ્તોત્રનો નિરંતર પાઠ माथी सिंह, प्राण, सर्प, ५०, समुद्र,४२ पास આઠ પ્રકારના ભષથી મુક્ત રહે છે. ભય સ્વયં જાણે ભય પામી તેમનાથી દૂર ચાલી જાય ६.४७.
No savage elephant or fierce lion, no violent inferno or merciless snake, no raging tide or bloody war, no fatal disease nor prolonged captivity can daunt the one who recites these verses in full faith. (47)