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रच्योतन्मदाविल-विलोल कपोलमूल मत्तभ्रमद्भ्रमरनाद-विवृद्धकोपम् । ऐरावताम मित्रमुद्धतमापतन दृष्ट्वा भयं भवति नो भवदाश्रितानाम् ||३८||
ऐरावत के समान विशालकाय हाथी, जिसके पंचल कपोलों पर मद झर-झरकर वह रहा हो, और मद पीने के लिए मैडराने वाले भौरों के नाद से जो अत्यन्त कुद्ध होकर अंगारे-सी लाल आँखें किए आक्रमण करने सामने आ रहा हो, ऐसा मत गजराज भी जब आपके ध्यान में लीन भक्त को देखता है तो उसका समूचा मंद शाना हो जाता है और आज्ञाकारी सेवक की भाँति आचरण करने लगता है। अर्थात् आपके शरणागत को मदोन्मत्तगजों से भी कोई भय नहीं
કે પ્રભુ! જેના કપાળમાંથી ઝરતા મદને પીયા મદોન્મત્ત ભમરાઓ ગુંજારવ કરી તેને કોષિત કરી રહ્યા હોય, એવા ગાંડાતુર, ઐરાવત જેવા વિશાળકાય, ચપળ, ઉત્તપણે સામે આવતા કાથીને જોઈને પણ તમારા આશ્રયે રહેલા ભક્તો વિચલિત થતાં નથી, જરા પણ
भपातांनी ३८.
As the bees buzz around his eyes, the fury of the musthy elephant consumes him. But the mere thought of you, Bhagawan, makes your devotee unafraid of even the fiercest of beasts (38)