________________ Vijay K. Jain has translated into English, with authentic explanatory notes, one of the finest classical Jaina texts Dravyasamgraha, composed by His Holiness Acarya Nemichandra Siddhanta Cakravarti (c. 10th century CE). This precious work would play a vital role in quenching the thirst for Truth of scholars as well as learners, and help them in understanding the tenets of Jainism. I highly appreciate your work and convey my auspicious blessings to you. April 2013, New Delhi Param Pujya Acarya 108 Vidyanand Muni जीव के परिणाम तीन प्रकार के होते हैं - अशुभ, शुभ एवं शुद्ध। भव्य जीव अशुभ परिणाम छोड़कर शुभ परिणाम में प्रवृत्त होते हैं तथा शुद्ध परिणाम की प्राप्ति के लिए सतत् प्रयत्नशील रहते हैं। महान् दिग्गज आचार्य ही शुद्धोपयोग से च्युत होने पर शुभोपयोग में आकर षडावश्यक तथा बारह प्रकार के तप करते हैं। तप का ही एक अंग स्वाध्याय है। संसारी जीवों के परिणामों की शुद्धि के लिए षड्द्रव्यों के ज्ञाता आचार्यों ने व्यवहार और निश्चय दोनों नयों से शास्त्रों की रचना करके महान् उपकार किया है। सद्धर्म-प्रेमी, धर्मानुरागी श्रीमान् विजय कुमार ने अत्यंत परिश्रम से 'द्रव्यसंग्रह' ग्रन्थ का अंग्रेजी अनुवाद करके अपने समय का सदुपयोग कर स्वयं तो पुण्यलाभ किया ही है, अन्य भव्य जीवों को पुण्यलाभ कराने में कारण बने हैं। वे अपने समय का सदुपयोग जिनवाणी की सेवा में करते रहें यह हमारा मंगलमय शुभ आशीर्वाद है। परम पूज्य आचार्य 108 सुबलसागरजी महाराज अप्रैल 2013 के सुशिष्य परम पूज्य 108 श्री अमितसेन मुनि ISBN 81-903639-5-6 Rs.: 450/ विकल्प Vikalp Printers