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___In other words-two chatuhshashtika (one sixty fourth fraction)
make one dvatrunshika (one thirty second fraction), two dvatrinshikas (one thirty second fraction) make one shodashika (one sixteenth fraction), two shodashikas (one sixteenth fraction) make one ashtabhagika (one eighth fraction), two ashtabhagikas (one eighth fraction) make one chaturbhagika (one fourth fraction), two chaturbhagikas (one fourth fraction) make one ardhamani (one half of a mani) and two ardhamanis (one half of a manı) make one mani. __३२१. एतेणं रसमाणप्पमाणेणं किं पओयणं ? ___ एएणं रसमाणप्पमाणेणं वारग-घडग-करग-किक्किरि-दइय-करोडिकुंडियसंसियाणं रसाणं रसमाणप्पमाणनिवित्तिलक्खणं भवइ। से तं रसमाणप्पमाणे। से तं माणे।
३२१. (प्र.) इस रसमानप्रमाण का क्या प्रयोजन है ?
(उ.) इस रसमानप्रमाण से वारक (छोटा घड़ा), घट-कलश, करक (झारी), किक्किरि (गगरी या कलशी), दृति (चमडे से बना पात्र-कुप्पा दीवड़ी), कोरडिका (बड़ी कुंडी) और कुंडिका (कुंडी) आदि में भरे हुए रसों (तरल पदार्थों) का परिमाण जाना जाता है। यह रसमानप्रमाण है। यह मानप्रमाण का स्वरूप है।
विवेचन-इन दो सूत्रो में रसमानप्रमाण का स्वरूप, धान्यमानप्रमाण से उसकी पृथकता तथा तरल पदार्थो के मापने के पात्रो के नाम का उल्लेख है।
____ अभिंतर सिहा जुत्ते-पद द्वारा धान्यमान और रसमान-इन दोनो प्रकार के मानप्रमाणो का अन्तर 2 स्पष्ट किया है। धान्यमानप्रमाण के द्वारा ठोस पदार्थों को मापा जाता है और मापे जाने वाले ठोस पदार्थ
का शिरोभाग-शिखा-ऊपर का भाग ऊपर की ओर होता है। धान्य की ढेरी लगाने पर वह ऊपर की तरफ ऊँची उठी हुई रहती है, जिसे शिरोभाग कहा जाता है। लेकिन रसमानप्रमाण के द्वारा तरल-द्रव पदार्थों का माप किये जाने और तरल पदार्थों की शिखा अन्तर्मुखी-अन्दर की ओर होने से वह सेतिका आदि रूप धान्यमानप्रमाण से चतुर्भागाधिक वृद्धि रूप होता है।
___ रसमानप्रमाण के प्रयोजन के प्रसंग मे जिन पात्रो का उल्लेख किया गया है, वे तत्कालीन " मगध देश में तरल पदार्थों को भरने के उपयोग मे आने वाले पात्र है। ये पात्र मिट्टी, चमडे एव धातुओं
से बने होते थे। संक्षेप में धान्यमानप्रमाण तथा रसमानप्रमाण को अगली तालिका से समझना * चाहिएसचित्र अनुयोगद्वार सूत्र-२
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Illustrated Anuyogadvar Sutra-2
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