________________
प्रमाण-प्रकरण THE DISCUSSION ON PRAMANA
सूत्र ९२ मे उपक्रम के छह भेद बताये थे-(१) आनुपूर्वी, (२) नाम, (३) प्रमाण, (४) वक्तव्यता, (५) अर्थाधिकार, और (६) समवतार। आनुपूर्वी और नाम का वर्णन पूर्ण हो जाने पर अब प्रमाण का वर्णन प्रारम्भ होता है।]
[In aphorism 92 it is mentioned that Upakram (introduction) is of six types—(1) Anupurvi (sequence/sequential configuration), (2) Naam (name), (3) Pramana (validity), (4) Vaktavyata (explication), (5) Arthadhikar (giving synopsis), and (6) Samavatar (assimilation). After concluding the first two, Anupurvi and Nama, the discussion of the third, Pramana, starts now.]
३१३. से किं तं पमाणे ?
पमाणे चउबिहे पण्णत्ते। तं जहा-१. दव्यप्पमाणे, २. खेत्तप्पमाणे, ३. कालप्पमाणे, ४. भावप्पमाणे।
३१३. (प्र.) प्रमाण क्या है ?
(उ.) प्रमाण के चार प्रकार हैं, जैसे-(१) द्रव्यप्रमाण, (२) क्षेत्रप्रमाण, (३) कालप्रमाण, और (४) भावप्रमाण।
विवेचन- 'प्रमाण' शब्द का अर्थ है, ज्ञान का साधन अथवा यथार्थ ज्ञान। न्याय व दर्शन ग्रन्थों मे 'प्रमाण' शब्द का यही अर्थ प्रसिद्ध है। वहाँ प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और आगम-इन चार प्रमाणों की विस्तृत चर्चा मिलती है। किन्तु आगम केवल दार्शनिक ग्रन्थ नहीं है, यह समग्र तत्त्व विषयक ज्ञान का कोष है, इसलिए यहाँ प्रमाण शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थ मे किया गया है। वृत्तिकार का कथन है-“जिसके द्वारा किसी वस्तु का माप-तौल किया जाये अथवा अन्य प्रकार से वस्तु जानी जाए उन सभी साधनों व हेतुओं को 'प्रमाण' के अन्तर्गत लिया है।" जब तक द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव-इन चार अपेक्षाओं से किसी विषय की चर्चा नहीं की जाय तब तक वह विषय पूर्ण स्पष्ट नहीं हो सकता। इसलिए यहाँ प्रमाण के द्रव्यप्रमाण, क्षेत्रप्रमाण. कालप्रमाण तथा भावप्रमाण-ये चार भेद बताये हैं और इन अपेक्षाओं से प्रमाण चर्चा की है। द्रव्यप्रमाण में तत्कालीन समाज में प्रचलित मान, उन्मान आदि मानदण्डों की व्यावहारिक जानकारी है। क्षेत्रप्रमाण में तीन प्रकार के अंगुल, पुरुष आदि क्षेत्र-नाप के साधनों की चर्चा है। कालप्रमाण में समय, घटिका, मुहूर्त से लेकर पल्योपम, सागरोपम तक काल की चर्चा है। भावप्रमाण में दार्शनिक ग्रन्थों में प्रचलित, प्रत्यक्ष, अनुमान आदि चार प्रमाणों की चर्चा हुई है। सर्वप्रथम द्रव्यप्रमाण की चर्चा है।
है
प्रमाण-प्रकरण
(51)
The Discussion on Pramana
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org