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(४) प्रतिपक्षपदेननाम
२६७. से किं तं पडिवक्खपदेणं ? ___ पडिवक्खपएणं नवेसु गामाऽऽगर-णगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुहपट्टणाऽऽसम-संबाह-सन्निवेसेसु निविस्समाणेसु असिवा सिवा, अग्गी सीयलो, विसं महुरं, कल्लालघरेसु अंबिलं साउयं, जे लत्तए से अलत्तए, जे लाउए से अलाउए, जे सुंभए से कुसुभए, आलवंते विवलीयभासए। से तं पडिवक्खपएणं। __ २६७. (प्र.) प्रतिपक्षपदेननाम क्या है ?
(उ.) प्रतिपक्षपद (विरोधी गुण) के कारण से होने वाला नाम इस प्रकार है-नवीन व ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्बट, मडंब, द्रोणमुख, पट्टन, आश्रम, संबाह और सन्निवेश आदि में प्रवेश करने अथवा बसाये जाने के अवसर पर अशिवा (शृगाली, सियारनी) को 'शिवा' कहा जाता है। कहीं पर अग्नि को शीतल और विष को मधुर, कलाल के घर में 'अम्ल' को स्वादु कहा जाता है। इसी प्रकार रक्त वर्ण से रंगे हुए को अलक्तक-(आलता या महावर), लाबु को अलाबु, जो सुंभक (शुभ वर्णयुक्त चमकदार) है उसे कुसुंभक (खराब रंग वाला) कहना और विपरीतभाषक-भाषक से विपरीत अर्थात् असम्बद्ध प्रलापी को 'अभाषक' कहा जाना। यह सब प्रतिपक्षपदनिष्पन्न नाम जानना चाहिए।
विवेचन-प्रतिपक्षपदेननाम का अर्थ है किसी मे वह गुण नही होने पर भी अर्थात् उसका विरोधीविपरीत गुण होने पर भी उसे उस नाम से पुकारना।
उदाहरण-सियारनी का नाम अमगल सूचक 'अशिवा' है किन्तु ग्राम आदि की बसावट के समय 'अशिवा' शब्द अमांगलिक होने से उसे 'शिवा' कहने की रूढ़ि चल पडी है।
मदिरा का स्वाद अम्ल होता है, पर तु माना जाता है कि कलाल के घर में 'अम्ल' कहने से मदिरा विकृत हो जाती है इसलिए उसे 'स्वादु' कहकर पुकारते हैं।
इसी प्रकार लाबु का अर्थ है पात्र, तुम्बा या लौकी, किन्तु तुम्बा पानी आदि रखने के काम आने वाला पात्र होने पर भी उसे 'अलाबु' कहा जाता है।
कोई असम्बद्ध प्रलाप करता है तो लोग कहते है यह बोलना नही जानता। बोलता तो है, फिर भी उसे 'बोलना नही जानता' इस प्रकार भाषक को अभाषक कहना। यह प्रतिपक्षपदेननाम का वर्णन है।
प्राचीन समय मे ग्राम आदि शब्दो के अर्थ इस प्रकार किये जाते थेग्राम-चारो ओर से कॉटो की बाड से घिरी बस्ती। आकर-जहाँ पर सोने आदि की खाने हो। नगर-जिस बस्ती मे कोई कर आदि नहीं लगता हो।
दसनाम-प्रकरण
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The Discussion on Das Naam
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