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This concludes the description of bhavya sharir dravya avashyak (physical avashyak as body of the potential knower).
These two analogies are based on Naigama naya (co-ordinated viewpoint) that deals with concepts and plurality. (३) ज्ञायक शरीर-भव्य शरीर व्यतिरिक्त द्रव्य आवश्यक
१९. से किं तं जाणगसरीर भवियसरीरवतिरित्ते दव्वावस्सए ?
जाणगसरीर-भवियसरीरवतिरित्ते दव्यावस्सए तिविहे पण्णत्ते। तं जहा(१) लोइए (२) कुप्पावयणिए (३) लोउत्तरिए।
१९. (प्रश्न) ज्ञायक शरीर-भव्य शरीर व्यतिरिक्त द्रव्य आवश्यक क्या है ?
(उत्तर) ज्ञायक शरीर-भव्य शरीर व्यतिरिक्त (उन दोनों से भिन्न) द्रव्य आवश्यक तीन प्रकार का है-जैसे-(१) लौकिक, (२) कुप्रावचनिक, और (३) लोकोत्तरिक। (3) JNAYAK SHARIR-BHAVYA SHARIR VYATIRIKTA DRAVYA AVASHYAK ___19. (Question) What is Jnayak sharir-bhavya sharir vyatirikta dravya avashyak (physical avashyak other than the body of the knower and the body of the potential knower)?
(Answer) Jnayak sharir-bhavya sharir vyatirikta dravya avashyak (physical avashyak other than the body of the knower and the body of the potential knower) is of three kinds-(1) Laukik, (2) Kupravachanik, and (3) Lokottarik.
विवेचन-जो लोक व्यवहार में आवश्यक कृत्य होते हैं, उन्हें लौकिक द्रव्य आवश्यक कहा है। यह समाज में प्रचलित अर्थ की अपेक्षा से है। कुप्रावचनिक का अर्थ है-एकान्तवादी धर्म प्ररूपक और लोकोत्तर का अर्थ है, अनेकान्तवादी श्रेष्ठ धर्म के प्ररूपक। इनका स्वरूप अगले सूत्रों में बताया है
Elaboration-Laukik means mundane and here it includes mundane obligatory duties. Kupravachanik means related to
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The Discussion on Essentials
भावश्यक प्रकरण
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