________________
कोट्ठितो ?
अयं महुकुंभे भविस्सइ, अयं घयकुंभे भविस्सइ । से तं भवियसरीरदव्यावस्सयं ।
१८. ( प्रश्न) भव्य शरीर द्रव्य आवश्यक क्या है ?
(उत्तर) - गर्भकाल की स्थिति पूर्ण होने पर जब जीव बाहर निकलता है तो वह इस पौद्गलिक शरीर से जिन उपदिष्ट भावों के अनुसार भविष्य में आवश्यक पद सीखेगा, किन्तु अभी वर्तमान में नहीं सीख रहा है, तब तक वह जीव भव्य शरीर द्रव्य आवश्यक कहलाता है।
प्रश्न
- (शिष्य पूछता है) इसको समझने के लिए कोई दृष्टान्त है ?
उत्तर
- (गुरु कहते हैं) यह मधु कुंभ होगा, घृत कुम्भ होगा ।
यह भव्य शरीर द्रव्य आवश्यक का स्वरूप है।
ये दोनों दृष्टान्त संकल्प मात्र को ग्रहण करने वाले नैगम नय की अपेक्षा से कहे गये हैं ।
(2) BHAVYA SHARIR DRAVYA AVASHYAK
18. (Question) What is bhavya sharir dravya avashyak (physical avashyak as body of the potential knower)?
(Answer) On maturity a being comes out of the womb or is born and it has the potential to learn the Avashyak (Sutra), as preached by the Jina in future, but it is not learning at present. As long as it is not learning, this being is called bhavya sharir dravya avashyak (physical avashyak as body of the potential knower).
(Question) (asked by a disciple) Is there some analogy to confirm this ?
(Answer) (by the guru) Yes, for example ( it is conventionally said that) this will be a pot of honey or this will be a pot of butter (although at present it contains neither honey nor butter).
अनुयोगद्वार सूत्र
Jain Education International
( ५२ )
For Private & Personal Use Only
Illustrated Anuyogadvar Sutra
www.jainelibrary.org