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(२) एवमेव ववहारस्स वि।
(२) इसी प्रकार व्यवहार नय (विशेष अथवा भेद को ग्रहण करने वाला) भी आगमतः द्रव्य आवश्यक के भेद स्वीकार करता है। (नैगम और व्यवहार की कथनशैली एक समान है)
(2) Same is true for Vyavahar naya (particularized viewpoint). (The style of stating is same for both co-ordinated and particularized viewpoints).
(३) संगहस्स एगो वा अणेगा वा अणुवउत्तो वा अणुवउत्ता वा आगमओ दव्यावस्सयं वा दव्यावस्सयाणि वा से एगे दव्यावस्सए।
(३) संग्रह नय (सामान्य मात्र को ग्रहण करने वाला) एक अनुपयुक्त आत्मा आगमतः एक द्रव्य आवश्यक है। (किन्तु अनेक अनुपयुक्त आत्माएँ आगमतः अनेक द्रव्य आवश्यक हैं-ऐसा स्वीकार नहीं करता है।) वह सभी आत्माओं को एक द्रव्य आवश्यक ही मानता है। क्योंकि वह समूहग्राही है।
(3) According to Samgraha naya (generalized viewpoint) one non-contemplative soul is one agamatah dravya avashyak (physical avashyak with scriptural knowledge). (But it does not accept that many non-contemplative souls are many physical avashyaks with scriptural knowledge. According to this all non-contemplative souls fall into just one category of physical avashyak with scriptural knowledge. This is because it is collective standpoint.
(४) उज्जुसुयस्स एगो अणुवउत्तो आगमओ एगं दवावस्सयं, पुहत्तं नेच्छइ। (४) ऋजुसूत्र नय (पर्याय मात्र को ग्रहण करने वाला) की अपेक्षा एक अनुपयुक्त आत्मा आगमतः एक द्रव्य आवश्यक है। वह पृथक्त्व (भेदों) को, भिन्नता को स्वीकार नहीं करता। ___ (4) According to Rijusutra naya (precisionistic viewpoint; viewpoint related to specific point or period of time) one non-contemplative soul is one agamatah dravya avashyak आवश्यक प्रकरण
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The Discussion on Essentials
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