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विवेचन - 'आवश्यक' एक पारिभाषिक शब्द है । यों तो जो भी कार्य अवश्य करने योग्य होता है, वह सभी 'आवश्यक' कहा जाता है। जैसे- शौच, स्नान, भोजन, शयन आदि । परन्तु यहाँ पर इनसे कोई प्रयोजन नहीं है । यह अध्यात्मशास्त्र है, इसलिए आत्म-शुद्धि के लिए जो अवश्य करने योग्य क्रिया है उसे ही यहाँ आवश्यक कहा गया है- अवश्यं कर्तव्यम् आवश्यकम् - इसकी दूसरी परिभाषा यह है - गुणानां आसमन्ताद् वश्यं आत्मानं करोतीत्यावश्यकम् - जो दुर्गुणों को हटाकर आत्मा को गुणों के वश्य/ अधीन करता है, अर्थात् सद्गुणों को अपने वश में करने की प्रक्रिया को आवश्यक कहा गया है। साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविकाओं को प्रतिदिन प्रातः - सायंकाल आत्म शुद्धि के लिए जो क्रिया करनी होती है उसे 'आवश्यक' कहा है। उसके छह भेद हैं जिसे षडावश्यक कहा जाता है।
Elaboration-Avashyak' is a technical term. The literal meaning of avashyak is essential or obligatory. All that has to be essentially or obligatorily performed is called avashyak; for example—excretion, bathing, eating, sleeping, etc. But here it conveys a different meaning. The subject of this book is spiritual. Therefore, the activities that are essential for purification of soul are called avashyak here. Another definition is-that which removes vices from soul and submits it to virtues is called avashyak. In other words the process of acquiring virtues is called avashyak. The obligatory acts to be performed by ascetics and laity every morning and evening with the purpose of purification of soul are called avashyak. As it is inclusive of six acts it is called Shadavashyak (sextet of six obligatory duties).
(१) नाम आवश्यक
१०. से किं तं नामावस्सयं ?
नामावस्सयं जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदुभयाण वा आवस्सए त्ति नाम कीरए । से तं नामावस्सयं ।
१०. ( प्रश्न ) नाम आवश्यक क्या है ?
(उत्तर) जिस प्रकार जीव या अजीव का, जीवों या अजीवों का, जीव- अजीव दोनों (तदुभय) का, तथा जीवों-अजीवों दोनों का, 'आवश्यक' नाम रखना । यह नाम आवश्यक है।
आवश्यक प्रकरण
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