________________
विवेचन-उक्त सूत्रों में यह स्पष्ट बताया है कि अंगप्रविष्ट श्रुत और अंगबाह्य श्रुत आदि सभी आगमों का अध्ययन करने में उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग का व्यवहार होता है, किन्तु फिर भी बाकी सबको छोड़कर यहाँ पर केवल आवश्यकसूत्र का ही अनुयोग करने का प्रारम्भ क्यों किया जा रहा है ?
चूर्णि एवं टीका आदि में इसका समाधान करते हुए कहा है-“श्रमणों की समस्त समाचारी का मूल आधार आवश्यकसूत्र है। इसलिए अन्य आगमों को छोड़कर इसी की व्याख्या को प्राथमिकता दी गई है।" आचार्य मलधारी ने इसी दृष्टि से कहा है-तत्र श्रमणैः श्रावकैश्च उभय संध्यं अवश्यं करणादावश्यकं-यह प्रत्येक श्रमण और श्रावक के लिए उभयकाल (प्रातः-सायं) अवश्य करणीय है, इसलिए इसे 'आवश्यक' कहा गया है। इसीलिए सबसे प्रथम इसकी व्याख्या की जाती है। (आवश्यक के सम्बन्ध में विस्तार के लिए देखें, अनुयोगद्वार सूत्र हिन्दी टीका श्री ज्ञान मुनि, भाग १, पृ. १२३)
Elaboration In the aforesaid aphorisms it has been clearly stated that in study of all Agams included in both Anga Pravishta Shrut and Anga Bahya Shrut the processes of studying or preaching (uddesh), revising and memorizing (samuddesh), teaching (anujna) as also subjecting to disquisition or elaboration (anuyoga) are employed. Then why, leaving all other scriptures, disquisition of only Avashyak Sutra is commenced here? ___Clarifying this the commentaries (Churni, Tika, etc.) state"The basis of all ascetic-praxis is Avashyak Sutra. Therefore priority has been given to this book over all other Agams.” Confirming this view Acharya Maladhari has stated-As this (activities mentioned in this book) is obligatory or essential activity or conduct to be performed every morning and evening by every ascetic and Shravak (a householder who has accepted the religious code of conduct) it is named 'Avashyak'. That is why it is discussed first of all. (for details about Avashyak Sutra see Commentary on Anuyogadvar Sutra by Shri Jnana Muni, part 1, p. 123.)
आवश्यक प्रकरण
( १७ )
The Discussion on Essentials
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org