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हवति पुण सत्तमी तं इमम्मि आधार काल भावे य ७ । आमंतणी भवे अट्ठमी उ जह हे जुवाण ! त्ति ८ ॥६२॥
सेतं अणामे ।
२६१. (२) (१) निर्देश में प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे-सो- वह, इमा - यह अथवा अहं मैं ।
(२) उपदेश में द्वितीया विभक्ति होती है । जैसे इमं भण- इसको कहो, तं कुणसु-वह करो आदि ।
(३) करण में तृतीया विभक्ति होती है। जैसे - तेण भणियं उसके द्वारा कहा गया अथवा मए कयं - मेरे द्वारा किया गया।
(४) सम्प्रदान, (हंदि) नमः तथा स्वाहा अर्थ में चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे विप्राय गां ददाति - ब्राह्मण को (के लिए ) गाय देता है । नमो जिनाय - जिनेश्वर के लिए मेरा नमस्कार हो । अग्नये स्वाहा-अग्नि देवता को हवि दिया जाता है।
(५) अपादान में पंचमी होती है । जैसे- एत्तो अपणय - यहाँ से दूर करो अथवा इतो गिण्ह - इससे ले लो |
(६) स्व-स्वामी सम्बन्ध बतलाने में षष्ठी विभक्ति होती है । जैसे - तस्स इमे वत्थु - उसकी अथवा इसकी यह वस्तु है ।
(७) आधार, काल और भाव में सप्तमी विभक्ति होती है। जैसे इमम्मि - (वह) इसमें है।
(८) आमंत्रण अर्थ में अष्टमी विभक्ति होती है। जैसे - हे जुवाण - हे युवक ! ॥५९-६२॥ यह आठ विभक्तिरूप अष्टनाम का वर्णन है ।
EXAMPLES OF EIGHT VIBHAKTIS
261. (2) (1) The example of the first vachan-vibhakti ( case-ending) in the sense of indication (nirdesh ) is so (he), imo (this person), or aham (I). (Nominative case)
(2) The example of the second vachan-vibhakti (caseending) in the sense of advice (upadesh) is imam bhan (speak this ), tam kunasu (do that ). ( Accusative case)
अनुयोगद्वार सूत्र
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Illustrated Anuyogadvar Sutra
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