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(६ ) धेवयस्सरमंता उ हवंति कलहप्पिया।
साउणिया वग्गुरिया सोयरिया मच्छबंधा य॥३७॥ (७) चंडाला मुट्ठिया मेता, जे यऽण्णे पावकारिणो।
गोघातगा य चोरा य नेसातं सरमस्सिता॥३८॥ (२६०-५) इन सात स्वरों के (फल प्राप्ति के अनुसार) सात स्वर लक्षण कहे गये हैं। जैसे___ (१) षड्जस्वर वाला मनुष्य वृत्ति-आजीविका प्राप्त करता है। उसका प्रयत्न निष्फल नहीं जाता है। उसे गोधन, पुत्र-पौत्रादि और सन्मित्रों का संयोग मिलता है। वह स्त्रियों का प्रिय होता है ॥३२॥
(२) ऋषभस्वर वाला मनुष्य ऐश्वर्यशाली होता है। सेनापतित्व, धन-धान्य, वस्त्र, गंध-सुगंधित पदार्थ, आभूषण-अलंकार, स्त्री, शयनासन आदि भोगसाधनों को प्राप्त करता है॥३३॥
(३) गांधारस्वर से गायन करने वाला श्रेष्ठ आजीविका प्राप्त करता है। वादित्रवृत्तिगाने का शौकीन होता है। कलाविदों में श्रेष्ठ-शिरोमणि माना जाता है। कवि अथवा कर्त्तव्यशील होता है। प्राज्ञ-बुद्धिमान्-चतुर तथा अनेक शास्त्रों में पारंगत होता है॥३४॥
(४) मध्यमस्वर वाले सुखजीवी होते हैं। रुचि के अनुरूप खाते-पीते और सुख से जीते हैं तथा दूसरों को भी खिलाते-पिलाते एवं दान देते हैं ॥३५॥
(५) पंचमस्वर वाला व्यक्ति राजा, शूरवीर, संग्राहक और अनेक मनुष्यों का नायक होता है॥३६॥
(६) धैवतस्वर वाला पुरुष कलहप्रिय, शाकुनिक (पक्षियों को मारने वालाचिड़ीमार), वागुरिक (शिकारी-हिरण आदि पकड़ने-फंसाने वाला), शौकरिक (सूअरों का शिकार करने वाला) और मत्स्यबंधक (मच्छीमार) होता है॥३७॥
(७) निषादस्वर वाला पुरुष चांडाल, वधिक, मुक्केबाज, गोघातक. चोर और इसी प्रकार के दूसरे-दूसरे पाप करने वाला होता है॥३८॥
अनुयोगद्वार सूत्र
( ४०४ )
Illustrated Anuyogadvar Sutra
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