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उदयनिष्पन्न के जीवोदयनिष्पन्न और अजीवोदयनिष्पन्न भेद मानने का कारण यह है कि कर्मोदयजन्य जो अवस्थाएँ साक्षात् जीव को प्रभावित करती हैं अथवा कर्म के उदय से जो पर्यायें जीव में निष्पन्न होती हैं, वे जीवोदयनिष्पन्न और अजीव अर्थात् पुद्गल के योग से जीव में जिन अवस्थाओं का उदय होता है, वे अजीवोदयनिष्पन्न औदयिकभाव हैं।
Elaboration-These three aphorisms give outline of Audayikbhaava (culminated state). The fruition of karmas (Jnanavaraniya, etc.) and the states or modes caused by this fruition are called Audayik-bhaava (culminated state) which on fruition give rise to some other mode.
The two categories of Udayanishpanna Audayik-bhaava (culminated state caused by fruition), namely Jivodayanishpanna and Ajivodaya-nishpanna are explained as the conditions caused by fruition of karma directly influencing soul are called Jivodaya-nishpanna. In other words the modes manifested in soul due to fruition of karmas is called Jivodayanishpanna. The modes manifested in soul due to its contact with matter or non-being are called Ajivodaya-nishpanna Audayikbhaava (culminated state caused by non-being).
जीवोदयनिष्पन्न औदयिकभाव का स्वरूप
२३७. से किं तं जीवोदयनिप्फन्ने ?
जीवोदयनिप्फन्ने अणेगविहे पण्णत्ते । तं जहा - णेरइए तिरिक्खजोणिए मणुस्से देवे, पुढविकाइए जाव वणस्सइकाइए, तसकाइए, कोहकसायी जाव लोहकसायी, इत्थीवेदए पुरिसवेदए णपुंसगवेदए, कण्हलेसे एवं नील. काउ. तेउ. पम्ह. सुक्कलेसे, मिच्छादिट्ठी अविरए अण्णाणी आहारए छउमत्थे सजोगी संसारत्थे असिद्धे । से तं जीवोदयनिफन्ने ।
२३७. ( प्रश्न) जीवोदयनिष्पन्न औदयिकभाव क्या है ?
(उत्तर) जीवोदयनिष्पन्न औदयिकभाव अनेक प्रकार का है । यथा - नैरयिक, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य, देव, पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक, त्रसकायिक, क्रोधकषायी यावत् लोभकषायी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, नपुंसकवेदी, कृष्णलेश्यी,
अनुयोगद्वार सूत्र
( ३५४ )
Illustrated Anuyogadvar Sutra
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