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ascending and descending sequence) from the result. This final result is called Adholoka kshetra-ananupurvi (random area-sequence of lower worlds).
This concludes the description of Adholoka kshetraananupurvi (random area-sequence of lower worlds).
विवेचन-अनानुपूर्वी में एक आदि सात पर्यन्त सात अंकों का परस्पर गुणा करने पर ५०४० भंग होते हैं। इनमें से आदि का भंग पूर्वानुपूर्वी और अन्तिम भंग पश्चानुपूर्वी रूप से इन दो को छोड़कर शेष ५०३८ भंग अनानुपूर्वी के हैं।
Elaboration—Represented by numbers this ananupurvi (random sequence) is like this : by multiplying numbers from 1 to 7 together we get 5040. Subtracting 2 (for purvanupurvi and pashchanupurvi from this gives us 5038. Thus there are 5038 random sequences. तिर्यग् (मध्य) लोक क्षेत्रानुपूर्वी
१६८. तिरियलोयखेत्ताणुपुची तिविहा पण्णत्ता। तं जहा-(१) पुवाणुपुब्बी, (२) पच्छाणुपुब्बी, (३) अणाणुपुवी।
१६८. तिर्यग् (मध्य) लोक क्षेत्रानुपूर्वी के तीन भेद हैं। जैसे-(१) पूर्वानुपूर्वी, (२) पश्चानुपूर्वी, (३) अनानुपूर्वी। TIRYAK-LOKA KSHETRA-ANUPURVI
_168. Tiryak-loka kshetra-anupurvi is of three types(1) Purvanupurvi, (2) Pashchanupurvi, and (3) Ananupurvi. १६९. से किं तं पुवाणुपुब्बी ?
पुव्वाणुपुब्बी-जंबुद्दीवे लवणे धायइ-कालोय-पुक्खरे वरुणे। खीर-घय-खोय-नंदी-अरुणवरे कुंडले रुयगे॥११॥ जम्बुद्दीवाओ खलु निरंतरा, सेसया असंखइमा।
भुयगवर-कुसवरा वि य कोंचवराऽऽभरणमाईया॥१२॥ आनुपूर्वी प्रकरण
The Discussion on Anupurvi
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