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[ चित्र परिचय १२ ।
Illustration No. 12 अधोलोक में सात नरक भूमियाँ इस चौदह राजू लोक में नीचे का सात राजू लोक अधोलोक कहा जाता है। उसमें रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर-नीचे के एक-एक हजार योजन छोड़कर बीच में भवनवासी देवों के करोड़ों भवन हैं। विविध प्रकार के रत्नों की प्रभा के कारण इसका नाम रत्नप्रभा है। इसके नीचे घनोदधि-जमी हुई पानी की परत, उसके नीचे घनवात-ठोस वायु और उसके नीचे तनुवात-पतली वायु है। फिर बीच का भाग आकाश से व्याप्त पोला है। उसके नीचे फिर शर्कराप्रभा आदि नरक भूमियाँ है।
रत्नप्रभा से क्रमशः शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा, तमस्तमाप्रभा, क्रमशः गणना करना, अधोलोक क्षेत्रपूर्वानुपूर्वी है। इनकी तमःस्तम प्रभा, तमः प्रभा इस विपरीत क्रम से गणना करना अधोलोक क्षेत्र पश्चानुपूर्वी है।
-सूत्र १६४ विस्तृत वर्णन : गणितानुयोग अधोलोक वर्णन
THE SEVEN HELLS IN THE LOWER WORLD
In this fourteen Rajju high Loka the lower seven Rajju area is called lower world. Here, above and below the Ratnaprabha hell, leaving a gap of one thousand yojans there are millions of abodes of Bhavan-vasi gods. It is called Ratnaprabha because it is radiant with the glow of a variety of gems (ratna). Below this is a layer of frozen water (ghanodadhi) below which there is a layer of dense air (ghanovat) followed by that of thin air (tanuvat). After this there is hollow space. Under this are Sharkaraprabha and other hells.
Starting from Ratnaprabha, arranging hells named Sharkaraprabha, Balukaprabha, Pankaprabha, Dhoom-prabha, Tamah-prabha, and Tamastamah-prabha in ascending sequential order is called Adholoka kshetra-purvanupurvi. Arranging hells from Tamastamah-prabha to Ratnaprabha in reverse order is called Adholoka kshetra-pashchanupurvi.
-Sutra : 164
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