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This concludes the description of ananupurvi (random sequence). विवेचन-इन तीन सूत्रों में औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी का स्वरूप बतलाया है।
औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी के प्रकरण में जैसे द्रव्यानुपूर्वी का अधिकार होने से धर्मास्तिकाय आदि द्रव्यों को पूर्वानुपूर्वी आदि रूप में बताया हैं, वैसे ही यहाँ क्षेत्रानुपूर्वी का प्रकरण होने से __ अधोलोक आदि क्षेत्र पूर्वानुपूर्वी आदि के रूप में समझना चाहिए। ___ संख्या की स्थापना से अनानुपूर्वी का रूप इस प्रकार बनता है, १-२-३ (यह पूर्वानुपूर्वी है) ३-२-१ (यह पश्चानुपूर्वी है। __ अब इन सभी संख्याओं को परस्पर गुणा करने से हमें प्राप्त होता है-१ x २ x ३ = ६। यह इन संख्याओं से बनने वाली समस्त श्रृंखलाएँ हैं-१, २, ३, १, ३, २, २, १, ३, २, ३, १, ३, १, २; तथा ३, २, १। अब इसमें से २ घटा दें (क्योंकि १, २, ३ पूर्वानुपूर्वी के रूप में तथा ३, २, १ पश्चानुपूर्वी के रूप में पहले दी जा चुकी हैं) तो हमें प्राप्त होता है ।। अतः इन संख्याओं में चार अनानुपूर्वियाँ हैं-१, ३, २, २, १, ३, २, ३, १; ३, १,२।।
Elaboration—These three aphorisms describe Aupanidhiki kshetra-anupurvi (orderly area-sequence).
Just as entities like Dharmastikaya have been presented in ascending and other type of sequences to describe physical sequence, here areas like upper world have been presented in the same way to describe area-sequence.
When represented by numbers ananupurvi (random sequence) is like this : {1, 2, 3} is purvanupurvi or ascending sequence and {3, 2, 1} is pashchanupurvi or descending sequence. Now by multiplying these numbers together we get 1 x 2 x 3 = 6. This is the total number of possible sequences-{1, 2, 3} {1, 3, 2} {2, 1, 3} {2, 3, 1} {3, 1, 2} and {3, 2, 1}. Now subtract 2 (because {1, 2, 3} is purvanupurvi and {3, 2, 1} is pashchanupurvi and both are already accounted for) from this and the result is 4. Thus there are four random sequences—{1, 3, 2} {2, 1, 3} {2, 3, 1} {3, 1, 2}. अनुयोगद्वार सूत्र
Illustrated Anuyogadvar Sutra
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