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विवेचन-द्रव्यों की गणना को.द्रव्यार्थता तथा प्रदेशों की गणना को प्रदेशार्थता एवं द्रव्यों तथा प्रदेशों की संयुक्त गणना को द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थता या उभयार्थता कहते हैं।
आनुपूर्वी द्रव्यों में तीन प्रदेशों का एक समुदाय, चार आकाश प्रदेशों का एक समुदाय, इत्यादि विशिष्ट पुद्गल स्कन्धों से जितने समुदाय बनते हैं, वे द्रव्य कहलाते हैं और इन समुदायों के जो आरम्भक (इकाई) है, वह प्रदेश है। ___ अनानुपूर्वी द्रव्य में एक प्रदेशावगाही द्रव्य से सूचित आकाश का प्रत्येक प्रदेश द्रव्य है। इस एक-एक प्रदेशात्मक द्रव्य में अन्य प्रदेश की कल्पना सम्भव नहीं है।
अवक्तव्य-द्रव्य में लोक में द्विप्रदेशावगाढ द्रव्य से सूचित आकाश प्रदेश अवक्तव्य द्रव्य है।
अल्प-बहुत्व-अवक्तव्य द्रव्य-द्विप्रदेशी स्कन्ध सबसे अल्प है। अनानुपूर्वीद्रव्य एक परमाणु रूप है। इसलिए वह अवक्तव्य द्रव्य से दुगुना होना चाहिए, फिर यहाँ विशेषाधिक क्यों कहा? इस शंका का समाधान यह है कि भिन्न-भिन्न परमाणुओं के संयोग से द्विप्रदेशी स्कन्धों का निर्माण होता रहता है। द्विप्रदेशी स्कन्ध अधिक संख्या में हो जाते हैं, तो अनानुपूर्वी द्रव्य (एक प्रदेशी) उससे दुगुने नहीं हो पाते। द्रव्यानुपूर्वी में प्रदेशार्थ की अपेक्षा आनुपूर्वीद्रव्य अवक्तव्य द्रव्य से अनन्त गुना बतलाये गये हैं। क्षेत्रानुपूर्वी के प्रकरण में ये असंख्येय गुणा बतलाये हैं। कारण आकाश-क्षेत्र के प्रदेश असंख्येय ही होते हैं।
Elaboration-Dravyarthata, pradesharthata, and dravyarthpradesharthata mean assessment or measurement with respect to dravya or substance (mass), pradesh or space-points (volume), and both combined respectively.
In anupurvi (sequential) substances are included all specific skandhas (aggregates) of three or more space-points or ultimateparticles. The unit of these is that space-point.
In ananupurvi (non-sequential) substances are included every ultimate particle occupying single space-point. Which means every space-point in space is included in this class. In such substance there is no scope for another space-point.
In avaktavya inexpressible) substances are included all space-points occupied by aggregates of two paramanus (ultimate-particles) आनुपूर्वी प्रकरण
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The Discussion on Anupurvi
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