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(Answer) The answer is same as that with regard to dravyanupurvi for all the three classes of substances. (aphorism 112)
विवेचन-सूत्र में द्रव्यानुपूर्वी के समान क्षेत्रानुपूर्वी के द्रव्यों की भाग प्ररूपणा का कथन किया है। इसका भाव यह है कि अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक द्रव्यों की अपेक्षा आनुपूर्वी द्रव्य असंख्यात भागों से अधिक हैं तथा शेष द्रव्य आनुपूर्वी द्रव्यों के असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं। __ इस विषय को अधिक स्पष्ट करने के लिए वृत्ति में स्थापना का प्रयोग किया है। आकाश के पाँच प्रदेशों की कल्पना करके अनानुपूर्वी, अवक्तव्यक और आनुपूर्वी द्रव्यों की स्थापना करके समझाया गया है। विस्तार के लिए देखें (अनु. महाप्रज्ञ. पृ. १३०-१३१) तथा (ज्ञानमुनि कृत टीका पृ. ६७२-७८ तक)
Elaboration—The aphorism states that the details regarding bhaag (spatial proportion) dvar (door of disquisition) of kshetranupurvi are same as those of dravyanupurvi. This indicates that anupurvi (sequential) substances are uncountable times more than the ananupurvi (non-sequential) and avaktavya (inexpressible) substances. In other words ananupurvi (non-sequential) and avaktavya (inexpressible) substances are equivalent to infinitesimal fraction of anupurvi (sequential) substances.
To clarify this, method of placement has been used in the Vritti. Anupurvi (sequential), ananupurvi (non-sequential), and avaktavya (inexpressible) substances have been placed in five imaginary space-points to explain the concept. (refer to Anuyogadvara by Acharya Mahaprajna p. 130-131; also that by Jnana Muni p. 672-78) (८) अनुगम से भावप्ररूपणा
१५७. णेगम-ववहाराणं आणुपुब्बीदव्वाइं कयरम्मि भावे होज्जा ? तिन्नि वि, णियमा सादिपारिणामिए भावे होज्जा। १५७. (प्रश्न) नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य किस भाव में वर्तते हैं ?
आनुपूर्वी प्रकरण
( २४३ )
The Discussion on Anupurvi
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