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________________ PAKOD.९० (० GlosRINKhada PRODRODARDROPARDA. (३) एवं अवत्तव्बगदव्वाणि वि भाणियबाणि। (३) अवक्तव्यक द्रव्यों के लिए भी इसी प्रकार जानना चाहिए। (3) The same is true for avaktavya (inexpressible) substances. विवेचन-सूत्र में एक और अनेक द्रव्यों की अपेक्षा क्षेत्रानुपूर्वी के द्रव्यों की क्षेत्रप्ररूपणा की गयी है। उसका आशय यह है-एक आनुपूर्वी द्रव्य, द्रव्य की अपेक्षा तो लोक के संख्यातवें या असंख्यातवें भाग में, संख्यात भागों या असंख्यात भागों में रहता है और देशोन लोक में भी रहता है। इसका कारण यह है कि स्कन्ध द्रव्यों की परिणमनशक्ति विचित्र प्रकार की होती है। कोई स्कन्ध छोटा होता है और कोई बड़ा। अतः विचित्र प्रकार की परिणमनशक्ति वाले होने के कारण स्कन्ध द्रव्यों का अवगाह लोक के संख्यात आदि भागों में होता है। प्रश्न-नैगम और व्यवहारनयसम्मत क्षेत्रानुपूर्वी के प्रसंग में एक द्रव्य की अपेक्षा आनुपूर्वी द्रव्य को देशोन लोक में अवगाढ होना बताया है किन्तु द्रव्यानुपूर्वी में अनन्तान्त परमाणुओं से निष्पन्न एवं पुद्गलद्रव्य के सबसे बड़े स्कन्ध रूप अचित्त महास्कन्ध को सर्वलोकव्यापी कहा है। इस प्रकार अचित्त महास्कन्ध की अपेक्षा एक आनुपूर्वी द्रव्य समस्त लोक में व्याप्त होता है। अतः यहाँ (क्षेत्रानुपूर्वी में) जो एक आनुपूर्वी द्रव्य की अपेक्षा देशोन लोक में अवगाहना कही है, क्या वह युक्तियुक्त है? उत्तर-इस जिज्ञासा के समाधान के लिए यह समझना चाहिए कि यह लोक आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक द्रव्यों से व्याप्त है, यदि आनुपूर्वी द्रव्य को सर्वलोकव्यापी माना जाये तो फिर अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक द्रव्यों के ठहरने के लिए स्थान न होने के कारण उनका अभाव मानना पड़ेगा। किन्तु जब देशोन लोक में एक आनुपूर्वी द्रव्य व्याप्त होकर रहता है, ऐसा मानते हैं तब अचित्त महास्कन्ध से पूरित हुए लोक में कम से कम एक प्रदेश और द्विप्रदेश ऐसे भी रह जाते हैं जो क्रमशः अनानुपूर्वी द्रव्य के विषयरूप से तथा अवक्तव्यक द्रव्य के विषयरूप से हेतु सुरक्षित हो जाते हैं। यदि यह माने कि आनुपूर्वी द्रव्य हैं तथा द्रव्यानुपूर्वी की अपेक्षा सर्वलोक व्याप्त हैं तब भी इन एक और दो प्रदेशों में आनुपूर्वी द्रव्य का सद्भाव रहता है तो भी अप्रधान होने से वहाँ उसकी नहीं किन्तु अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक द्रव्यों की अस्तित्त्ववाची प्रधानता होने से विवक्षा की जाती है। इसीलिए एक आनुपूर्वी द्रव्य की अपेक्षा से देशोन लोक में अवगाहित कहा गया है। सारांश यह है कि क्षेत्रानुपूर्वी में यदि लोक के समस्त प्रदेश आनुपूर्वी रूप मान लिये जायें तो उस स्थिति में अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक प्रदेश कौन से होंगे जिनमें अनानुपूर्वी और अनुयोगद्वार सूत्र ( २३६ ) Illustrated Anuyogadvar Sutra KARO oke HQOD.Com * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007655
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2001
Total Pages520
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_anuyogdwar
File Size18 MB
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