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(२) अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी के भेद
९८. से किं तं णेगम-ववहाराणं अणोवणिहिया दवाणुपुब्बी ?
णेगम-ववहाराणं अणोवणिहिया दव्वाणुपुष्वी पंचविहा पण्णत्ता। तं जहा(१) अट्ठपयपरूवणया, (२) भंगसमुक्कित्तणया, (३) भंगोवदंसणया, (४) समोयारे, (५) अणुगमे।
९८. (प्रश्न) नैगमनय और व्यवहारनय द्वारा मान्य अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी क्या है ?
(उत्तर) नैगम और व्यवहारनयसंमत द्रव्यानुपूर्वीक के पाँच प्रकार हैं। जैसे(१) अर्थपदप्ररूपणा, (२) भंगसमुत्कीर्तनता, ३) भंगोपदर्शनता, (४) समवतार, और (५) अनुगम। (2) TYPES OF ANAUPANIDHIKI DRAVYA-ANUPURVI ____98. (Question) What is this Naigam-vyavahar naya sammat anaupanidhiki dravya-anupurvi (disorderly physical sequence conforming to coordinated and particularized viewpoints)?
(Answer) Naigam-vyavahar naya sammat anaupanidhiki dravya-anupurvi (disorderly physical sequence conforming to coordinated and particularized viewpoints) is of five types—(1) Arth-padaprarupana (semantics), (2) Bhang-samutkirtanata (enumeration of divisions or bhangs), (3) Bhangopadarshanata (explication of divisions or bhangs), (4) Samavatara (compatible assimilation), and (5) Anugam (systematic elaboration).
विवेचन-नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी का जिन पाँच प्रकारों द्वारा विचार किया जाना है, उनके लक्षण इस प्रकार हैं
(१) अर्थपदप्ररूपणा-सर्वप्रथम संज्ञा और संज्ञी के सम्बन्ध मात्र का कथन करना अर्थपदप्ररूपणा है।
(२) भंगसमुत्कीर्तनता-आनुपूर्वी आदि के पदों से निष्पन्न हुए पृथक्-पृथक् भंगों-विकल्पों या भेद प्रभेद आदि भंगों का संक्षेप रूप में कथन करना भंगसमुत्कीर्तनता है।
(३) भंगोपदर्शनता-संक्षेप में कहे गये उन्हीं भंगों में से प्रत्येक भंग का अपने अभिधेय रूप त्र्यणुकादि अर्थ के साथ उपदर्शन-कथन करना। अर्थात् भंगसमुत्कीर्तन में तो मात्र आनुपूर्वी प्रकरण
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The Discussion on Anupurvi
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