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____The example given to explain prashast-bhaava-upakram (righteous means of knowing thoughts of others) is that of moulding one's behaviour according to the desires of the seniors after understanding their intentions by studying their actions, words, gestures, and expressions. उपक्रम के छह प्रकार
९२. अहवा उवक्कमे छबिहे पण्णत्ते। तं जहा-(१) आणुपुब्बी, (२) नाम, (३) पमाणं, (४) वत्तव्वया, (५) अत्थाहिगारे, (६) समोयारे।
९२. अथवा उपक्रम के छह प्रकार हैं। यथा-(१) आनुपूर्वी, (२) नाम, (३) प्रमाण, (४) वक्तव्यता, (५) अर्थाधिकार, और (६) समवतार। SIX KINDS OF UPAKRAM
92. Also, upakram (introduction) is (alternatively) of six types-(1) Anupurvi (sequence/sequential configuration), (2) Nama (name), (3) Pramana (validity), (4) Vaktavyata (explication), (5) Arthadhikar (giving synopsis), and (6) Samavatar (assimilation).
विवेचन-उपक्रम के छह प्रकार पहले भी बताये जा चुके हैं, उनमें से छठे भावोपक्रम के प्रसंग में प्रशस्त भावोपक्रम में गुरुजनों आदि का अभिप्राय जानना एक प्रकार बताया है। आचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण का कथन है-गुरु भावोपक्रम के पश्चात अब शास्त्रीय भावोपक्रम बताते हुए यहाँ पुनः छह भावोपक्रम का वर्णन किया है। जो आगे क्रमशः किया जा रहा है। इन छह की संक्षिप्त परिभाषाएँ इस प्रकार हैं
(१) आनुपूर्वी-एक के बाद एक क्रमशः होना। परिपाटी या अनुक्रम से किसी चीज की स्थापना करना आनुपूर्वी है। ध्यान देने की बात है कि एक या दो वस्तु में आनुपूर्वी का क्रम नहीं हो सकता। कम से कम तीन वस्तु या तीन का समूह हो तभी आनुपूर्वी होती है।
(२) नाम-जीव या पुद्गल को उनकी पहचान के लिए कोई संज्ञा देना नाम है। (३) प्रमाण-सत्य तक पहुँचने का साधन। (४) वक्तव्यता अध्ययन में आये हुए प्रत्येक अवयव का यथासंभव नियत अर्थ कहना।। (५) अर्थाधिकार-अध्ययन में निरूपित विषय का वर्णन करना।
(६) समवतार-एक वस्तु का दूसरी वस्तु में अन्तर्भाव अथवा समावेश करना। अनुयोगद्वार सूत्र
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Illustrated Anuyogadvar Sutra
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