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विवेचन-इस सूत्र में भावोपक्रम के सम्बन्ध में बताया है। प्रसंगानुसार भाव के अनेक ) अर्थ होते हैं, जैसे-स्वभाव, सत्ता, अभिप्राय, विचार आदि। यहाँ 'भाव' उपक्रम का अर्थ है,
किसी का अभिप्राय जानने के लिए किया गया प्रयत्न, उपाय या मनोगत भावों को पहचान कर उसके व्यवहार को समझने की चतुरता, कला। यह एक प्रकार का मनोविज्ञान है। ___ पिछले सूत्रों की तरह यहाँ भी भावोपक्रम के आगमतः तथा नो आगमतः दो भेद बताये हैं। नो-आगमतः भावोपक्रम के भी दो भेद हैं-(१) अप्रशस्त भावोपक्रम, तथा (२) प्रशस्त भावोपक्रम। ___ अप्रशस्त का अर्थ है-जिसका उद्देश्य लौकिक हो, स्वार्थपूर्ण हो वह अप्रशस्त तथा आत्म-कल्याण के प्रयोजन से किया गया प्रशस्त है। अप्रशस्त भावोपक्रम को समझाने के लिए शास्त्रकार ने तीन दृष्टान्त दिये हैं। __ प्रशस्त भावोपक्रम को समझाने के लिए सूत्रकार ने गुरुजनों के इंगित-संकेत-चेष्टा-मुख मुद्रा आदि से उनका मनोभाव समझकर वैसा अनुकूल व्यवहार करने का उदाहरण दिया है। ____Elaboration This aphorism discusses bhaava-upakram. With reference to different contexts the word 'bhaava' has many meanings, such as nature, state, existence, intention, thought, etc. Here bhaava-upakram means the attempt or effort made to know the intention of some person or the ability or capacity to understand behaviour by reading a person's thoughts. It is like understanding human psychology.
Like the preceding aphorism here also two broad classifications have been made of bhaava-upakram, Agamatah and No-Agamtah. Further, there are two categories of NoAgamatah-bhaava-upakram (the means or effort of knowing the houghts and intentions of others without scriptural knowledge)-Prashast-bhaava-upakram (righteous means of knowing thoughts of others) and Aprashast-bhaava-upakram (unrighteous means of knowing thoughts of others)
Aprashast means that which is done with mundane or selfish motives. Prashast means that which is done with the motive of spiritual uplift. As already mentioned, the author has given three examples to explain aprashast-bhaava-upakram (unrighteous means of knowing thoughts of others).
उपक्रम प्रकरण
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The Discussion on Upakram
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