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चित्र परिचय ८
Illustration No. 8
परिकर्म और वस्तु विनाश सचित्त द्रव्य उपक्रम के तीन भेदों के दो रूप हैं-(१) परिकर्म, और (२) वस्तु विनाश। जैसे-वृक्ष को खाद पानी देकर सुन्दर और सुदृढ़ बनाने का प्रयास परिकर्म है और उसका समूल उच्छेद कर देना, वस्तु-विनाश है।
(१) द्विपद परिकर्म-दो पैर वाले (मनुष्यों को) जैसे-पहलवान को खिला-पिलाकर, तेल, मालिश करके शरीर को पुष्ट करना।
(२) चतुष्पद परिकर्म, जैसे-घोड़ा इत्यादि पशुओं को घास, दाना आदि खिलाना मालिश करना।
(३) अपद परिकर्म, जैसे-आम आदि फलों को साफ करके उनके कागज में लपेट कर पुआल आदि में सुरक्षित रखना।
(४). अचित्त द्रव्य परिकर्म-अचित्त द्रव्य को अधिक गुणकारी बनाना जैसे गुड़ या शक्कर से मिश्री पतासे बनाना। (५) मिश्र द्रव्य परिकर्म-जैसे-आभूषण पहने हुए घोड़े के पाँवों या पीठ पर मालिश करना।
-सूत्र ७९ से ८४
PARIKARMA AND VASTU-VINASH
The three types of sachitt dravya-upakram have two sub-categories each--parikarma (nourishment) and vastu-vinash (destruction). For example to nourish a tree by providing manure and water is parikarma. To pull it out from roots is vastu-vinash.
(1) Dvipad-parikram--To make a bipad (man), like a wrestler, strong by giving him nourishing food and oil-massage.
(2) Chatushpad-parikram-To give fodder and grains, and to massage quadrupeds like horse.
(3) Apad-parikram-To clean, wrap in paper, and place in hay fruits like mango.
(4) Achitt dravya parikarm-To improve qualities of a material thing, for example to make crystals or condiments from sugar or jaggery.
(5) Mishra dravya parikarm-To massage the legs or back of a horse adorned with ornaments.
-Sutra : 79-84
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