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उपोद्घात। इसकी उपयोगिता का कथन करते हुए जिनभद्र गणि कहते - "जैसे अँधेरे में रखी हुई वस्तु दीपक जलाने से साफ दिखाई देती है, उसी प्रकार शास्त्र में निहित भाव 'उपक्रम' या उपोद्घात द्वारा अभिव्यक्त हो जाता है। (आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. ७१)
निक्षेप - शास्त्र की व्याख्या करने का यह दूसरा द्वार है। शब्द में अर्थ का निक्षेप करके हम उससे अपने कथनीय भाव को व्यक्त कर सकते हैं। इसकी व्याख्या सूत्र ७ के विवेचन में की जा चुकी है।
अनुगम - शास्त्र की व्याख्या करने का यह तीसरा द्वार है। सूत्र के अनुकूल अर्थ का कथन करना अनुगम है। निक्षेप से किये हुए भेदों में से प्रकरण या प्रसंग के अनुसार अर्थ की उद्भावना करना अनुगम है। चूर्णिकार के अनुसार सुत्तं अणु तस्स अणुरूव गमणत्तातो अणुगमो'सूत्र' को अणु कहा है। उसके अनुकूल उचित अर्थ का गमन करना - ग्रहण करना अनुगम है।
नय-सूत्र की व्याख्या करने का चौथा द्वार है 'नय' । वस्तु अनन्त धर्मात्मक होती है, परन्तु उसके अनन्त धर्मों का एक साथ कथन नहीं किया जा सकता। उसमें रहे अन्य धर्मों का निषेध नहीं करते हुए एक धर्म का सापेक्ष कथन करना नय है। इसकी व्याख्या आगे की जायेगी।
Elaboration-Following the statement that Now I will take up each individual chapter.' the author first of all starts the discussion about Samayik, the first chapter.
Meaning of samayik-The attitude of equanimity present in a soul devoid of attachment and aversion and endowed with a perception of sameness of all elements with the self is called sam (equality). The acquisition (aaya) of this attitude of equality (sam) through enhancing virtues like knowledge is called samaya. The instrument or means of this acquisition is called samayik. Thus samayik means the practice of acquiring the attitude of equality or equanimity.
As already stated, to systematically analyze and elaborate the words and text or to fit (yoga) the right meaning at right place is called anuyoga (disquisition). It is easy to go in and come out of a city that has four gates (dvars). In the same way it is easy to grasp the meaning of a city-like complex scripture if we enter it through four gates (dvar or approach). These four dvars (approaches) are upakram, nikshep, anugam and naya.
आवश्यक अर्थाधिकार प्रकरण
( ११७ ) The Discussion on Purview of Avashyak
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