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Pratyakhyan (acquiring virtues) is aimed at future. Pratikraman (critical review) is meant for the failures in the past whereas pratyakhyan is meant for acquisition of virtues for the future. (refer to the Tika of Anuyogadvar Sutra by Shri Jnana Muni, pp. 377-400 for more details.)
अनुयोगद्वार - नामनिर्देश
७५. तत्थ पढमज्झयणं सामाइयं । तस्स णं इमे चत्तारि अणुओगद्दारा भवंति । तं जहा - ( १ ) उवक्कमे, (२) णिक्खेवे, (३) अणुगमे, (४) गए ।
७५. इन (छह अध्ययनों) में से प्रथम सामायिक अध्ययन के यह चार अनुयोग द्वार हैं- (9) उपक्रम, (२) निक्षेप, (३) अनुगम, और (४) नय ।
ANUYOGADVAR
75. First of these chapters is Samayik and it has following four anuyogadvars (approaches of disquisition)(1) Upakram, (2) nikshep, (3) anugam, and (4) naya.
विवेचन - “एक्केक्कं पुण अज्झयणं कित्तइस्सामि" के निर्देशानुसार सूत्रकार ने सर्वप्रथम सामायिक सम्बन्धी विचारणा प्रारम्भ की है।
सामायिक की नियुक्ति - "समस्य आयः - समायः प्रयोजनमस्येति सामायिकम् । ” – सर्वभूतों में आत्मवत् दृष्टि से सम्पन्न राग-द्वेषरहित आत्मा के (समभाव रूप ) परिणाम को सम और इस सम की आय - प्राप्ति या ज्ञानादि गुणोत्कर्ष के साथ लाभ को समाय कहते हैं। यह समाय ही जिसका प्रयोजन है, उनका नाम सामायिक है। अर्थात् समभाव-प्राप्ति की साधना ।
पहले बताया जा चुका है कि अध्ययन के अर्थ का कथन करने की विधि का नाम अनुयोग है । अथवा सूत्र के साथ अर्थ का अनुकूल अर्थ स्थापित करना अनुयोग है। जिस प्रकार नगर में प्रवेश करने के चार द्वार होने से नगर में जाना-आना सरल होता है उसी प्रकार शास्त्ररूपी नगर में चार द्वारों से प्रवेश करने पर शास्त्र का रहस्य समझने में सरलता होती है। चार द्वार हैं- उपक्रम, निक्षेप, अनुगम और नय ।
उपक्रम - शास्त्र की व्याख्या करने का पहला द्वार है उपक्रम । जिससे श्रोता और पाठक को शास्त्र का प्रारम्भिक परिचय प्राप्त होता है, अर्थात् शास्त्र का गम्भीर विषय जिससे अपने समीप आ जाता है उस प्रयत्न को 'उपक्रम' कहा जाता है। इसका समानार्थक शब्द है।
अनुयोगद्वार सूत्र
( ११६ )
Illustrated Anuyogadvar Sutra
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